रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में हुई है ।
महाकवि तुलसीदास ने संवत् 1631 में रामचरितमानस को लिखना आरंभ किया और यह महान् ग्रंथ संवत् 1633 में लिखकर पूरा हुआ।
इसमें सात कांड हैं, जिनका क्रम इस प्रकार है-बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड, उत्तरकांड ।
तुलसीदास का रामचरितमानस एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके अध्ययन से प्रत्येक व्यक्ति को संतुष्ट, सुखी और सर्वहितकारी जीवन व्यतीत करने में सहायता मिलती है |
रामचरितमानस विश्व-साहित्य की अनुपम कृति है।
प्रसिद्ध भक्त और मानस के व्याख्याता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार ने रामचरितमानस की विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया है-
“श्रीरामचरितमानस का स्थान हिंदी-साहित्य में ही नहीं, जगत् के साहित्य में निराला है। इसके जोड़ का ऐसा ही सर्वांग सुंदर, उत्तम काव्य के लक्षणों से भी युक्त, साहित्य के सभी रसों का आस्वादन करानेवाला, काव्य-कला की दृष्टि से भी सर्वोच्च कोटि का आदर्श गृहस्थ जीवन, आदर्श पातिव्रत धर्म, आदर्श भातृ-धर्म के साथ-साथ सर्वोच्च भक्ति, ज्ञान, त्याग, वैराग्य तथा सदाचार की शिक्षा देनेवाला, स्त्री-पुरुष, बालक, वृद्ध और युवा सबके लिए समान उपयोगी एवं सर्वोपरि-सगुण-साकार भगवान् की आदर्श मानव-लीला तथा उसके गुण, प्रभाव, रहस्य तथा प्रेम के गहन तत्त्वों को अत्यंत सरस, रोचक एवं ओजस्वी शब्दों में व्यक्त करने वाला कोई दूसरा न था। हिंदीभाषा में ही नहीं, कदाचित् ऐसा ग्रंथ संसार की किसी भी भाषा में आज तक नहीं लिखा गया।”