मैं शैली का प्रयोग अप्रत्याशित लेखन में किया जाता है
अप्रत्याशित लेखन:- अप्रत्याशित विषयों पर कम समय में अपने विचारों को संकलित कर उन्हें सुंदर, सुग्राह्य एवं सरल शब्दों में अभिव्यक्त करने की चुनौती है। अप्रत्याशित लेखन के विषयों की संख्या अपरिमित है।
आप जो भी देख सकते हैं या कल्पना कर सकते हैं वह एक विषय हो सकता है। अपनी अभिव्यक्ति को लिखित रूप देना अत्यंत कठिन कार्य है।
क्योंकि आज के ज्यादातर लोग आत्मनिर्भर होकर लिखने का अभ्यास नहीं करते। लेखन का आशय भाषा के सहारे किसी विषय-वस्तु पर विचार कर उसे व्याकरणिक शुद्धता के साथ आकर्षक, सग्राहय एवं सुगठित ढंग से अभिव्यक्त करने से है।
भाषा सिर्फ विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं अपितु स्वयं विचार करने का साधन भी है। लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता हमें अपने मौलिक अधिकारों में से एक अभिव्यक्ति के अधिकार का उचित उपयोग करने की क्षमता देगी।
अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में ध्यान रखने योग्य मूल तथ्य अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना अत्यावश्यक है।
(i) इस लेखन में ‘मैं’ शैली का प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है।
(ii) दिए गए विषय पर जो भी सार्थक और सुसंगत विचार हमारे मस्तिष्क में आता है, उन्हें हमें स्वतंत्रता से व्यक्त करना है।
(iii) स्पष्ट फोकस वाले विषयों; जैसे-उपन्यासों में स्त्री, राधा के प्रेम इत्यादि विषयों पर विचार प्रवाह पर थोड़ा नियंत्रण रखना पड़ता है क्योंकि ऐसे विषयों पर लिखते हुए हम विषय में व्यक्त वस्तुस्थिति की उपेक्षा नहीं कर सकते।
(iv) हमारे मन में किसी भी विषय पर अनेक विचार आ सकते हैं। इस स्थिति में अपने मन को विराम देकर अपने विचारों में से किसी एक को चुनें और उसे विस्तार दें।
(v) यह विशेष ध्यान रखें कि आप ऐसे विचार को विस्तार के लिए चुनें जिसकी शुरुआत आकर्षक होने के साथ-साथ निर्वाह योग्य भी हो।
(vi) आप अपने मन में विषय के अनुरूप एक रूपरेखा तैयार कर लें और अपनी बात उसी के अनुसार सिलसिलेवार ढंग से आगे बढ़ाएँ।
(vii) आपकी रचना सुसंबद्ध होनी चाहिए। सुसंबद्धता किसी भी तरह के लेखन की एक बुनियादी शर्त है।
(viii) विवरण विवेचन के सुसंबद्ध होने के साथ-साथ उसका सुसंगत होना भी अच्छे लेखन की एक विशेषता है। अर्थात आपकी कही गई
बातों में विरोधाभास न हो। अगर आपकी दो बातें एक-दूसरे का खंडन करती हों तो यह एक अक्षभ्य दोष है।
(ix) सबसे पहले ध्यान रखें कि इस तरह के लेखन में कोई बंधन नहीं होता अर्थात विषय एक खुले मैदान की तरह होता है जिसमें स्वतंत्र विचरण की स्वतंत्रता होती है।
(x) आपके लेखन में आत्मनिष्ठता के साथ-साथ आपके व्यक्तित्व की छाप भी होनी चाहिए।
(xi) विषयानुरूप सामग्री का चयन और क्रमबद्धता पर ध्यान रखना चाहिए।
(vii) विचारों को एक ही अनुच्छेद में समाहित करें।
(viii) छोटे-छोटे, व्यवस्थित और सुसंगठित वाक्य बनाएँ।
(viv) सरल और प्रभावी शैली में विषय-प्रस्तुति आवश्यक है।
(xv) शुद्ध, स्पष्ट और प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग करें।
(xvi) विषय के सभी पक्षों की तर्कसंगत और संक्षिप्त प्रस्तुति करें।