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jivtarachandrakant.
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- September 13, 2021 at 11:55 am
भूगर्भ में पर्पटी के नीचे के भाग को मैंटल कहते है |यह लगभग 30-2900 किमी गहराई तक विस्तृत होता है यह पृथ्वी के क्रोड़ को चारों ओर से घेरता है।
मेंटल पृथ्वी के आयतन के अधिकांश भाग का निर्माण मेंटल द्वारा किया जाता है।
यह सिलिकेट रॉक आयरन और मैग्नीशियम से बना होता है।
इस परत को गुटेनबर्ग-विएचर्ट डिसकंटुइटी द्वारा कोर से अलग किया गया है।
बाहरी और भीतरी मेंटल को रेपट्टी डिसकंटुइटी नाम के एक और असातत्य द्वारा अलग किया जाता है।
मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) कहा जाता है।
‘एस्थेनो’ (Astheno) शब्द का अर्थ दुर्बलता से है।
इसका विस्तार 400 कि0मी0 तक आँका गया है।
ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है, उसका मुख्य स्रोत यही है।
इसका घनत्व भूपर्पटी की चट्टानों से अधिक है। (अर्थात् 3.4 ग्राम प्रति घन से0मी0 से अधिक है।)
भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल (Lithosphere) कहलाते हैं।
इसकी मोटाई 10 से 200 कि0 मी0 के बीच पाई जाती है। निचले मैंटल का विस्तार दुर्बलतामंडल के समाप्त हो जाने के बाद तक है। यह ठोस अवस्था में है।
पृथ्वी की आतंरिक संरचना –
पृथ्वी की भूपर्पटी की ऊपरी परत जो जीवन का समर्थन करने में सक्षम है, उसे लिथोस्फीयर या स्थलमंडल कहा जाता है।
पृथ्वी के आंतरिक भाग की तीन अलग-अलग परतें हैं वे हैं-
(a) भूपर्पटी
(b) मेंटल
(c) क्रोड़
(a) भूपर्पटी (The Crust)- यह ठोस पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है।
यह बहुत भंगुर (Brittle) भाग है जिसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है।
महासागरों में भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है।
महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 कि0 मी0 है, जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 कि0 मी0 तक है।
मुख्य पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटाई और भी अधिक है।
हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भूपर्पटी की मोटाई लगभग 70 कि0मी0 तक है।
भूपर्पटी भारी चट्टानों से बना है और इसका घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है।
महासागरों के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट निर्मित हैं।
महासागरों के नीचे इनका घनत्व 2.7 ग्राम प्रति घन से0मी0 है।
पृथ्वी की सभी भू-आकृतियाँ जैसे; पर्वत, पठार मैदान, महासागरों, समुद्रों, झीलों और नदियों के साथ, इसी के ऊपर स्थित हैं ।
भूपर्पटी को दो भागों में विभाजित किया गया है: पहला पतला महासागरीय भूपर्पटी, जो महासागरीय बेसिनों के नीचे स्थित है और दूसरा अपेक्षाकृत मोटी ‘महाद्वीपीय भूपर्पटी’ जिसपर सारे महाद्वीप स्थित हैं।
भूपर्पटी और मेंटल के बीच की सीमा को मोहरोविविक असातत्य कहा जाता है।
(b) मेंटल- भूगर्भ में पर्पटी के नीचे के भाग को मैंटल कहते है |
(c) पृथ्वी का क्रोड़ –पृथ्वी का क्रोड़ मुख्य रूप से लोहा एवं निकल से बना होता है।
क्रोड़ की मोटाई लगभग 3400 किमी है।
भूकंपीय तरंगों के वेग ने पृथ्वी के क्रोड को समझने में सहायता की है।
बाह्य क्रोड (Outer core) तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड (Inner core) ठोस अवस्था में है।
मैंटल व क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम प्रति घन से0 मी० तथा केंद्र में 6,300 कि0मी0 की गहराई तक घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन से0मी0 तक हो जाता है। इससे यह पता चलता है कि क्रोड भारी मुख्यत: निकिल (Nickle) व लोहे (Ferrum) का बना है। इसे ‘निफे’ (Nife) परत के नाम से भी जाना जाता है।
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Tagged: क्रोड़, धरातल, पृथ्वी की संरचना, भूपर्पटी, मेंटल
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