मृदा संरक्षण के 2 उपाय

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        मृदा संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय महत्त्वपूर्ण हैं
        (1) 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग कृषि कार्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यदि ऐसी ढालयुक्त जमीन पर कृषि कार्य करना आवश्यक है तो इस पर सीढ़ीदार खेत निर्मित कर कृषि कार्य करने चाहिए।

        (2) भारत के विभिन्न भागों में अतिचारणता तथा स्थानान्तरित कृषि अपनाए जाने के कारण प्रभावित क्षेत्र में भूमि अपरदन बढ़ जाता है। स्थानीय लोगों को भूमि अपरदन के दुष्परिणामों के बारे में जानकारी प्रदान कर पशुचारणता तथा स्थानान्तरित कृषि पर नियन्त्रण करना चाहिए।

        (3) समोच्च रेखाओं के अनुसार खेतों की मेड़बन्दी, समोच्चरेखीय सीढ़ीदार खेतों का निर्माण, नियन्त्रित चराई, नियमित वानिकी, आवरण फसलों की कृषि, मिश्रित खेती तथा फसलों का हेर-फेर जैसे उपाय भी भूमि अपरदन को कम करके मृदा संरक्षण में सहायक होते हैं।

        (4) आर्द्र प्रदेशों में अवनालिका अपरदन को कम करने के लिए रोके बाँधों की एक श्रृंखला बना देनी चाहिए तथा मरुस्थलीय व अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेशों में कृषि योग्य भूमि पर बालू के टीलों के विस्तार को रोकने के लिए वृक्षों की रक्षक मेखला बना देनी चाहिए।

        साथ ही ऐसे क्षेत्रों में वन्य कृषि को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए। भारत में केन्द्रीय शुल्क भूमि अनुसंधान संस्थान (कजरी) पश्चिमी राजस्थान में बालू के टीलों को स्थिर करने को लिए प्रयासरत है।

        (5) कृषि के लिए अनुपयुक्त भूमि को चरागाह क्षेत्रों में बदलने के कार्य को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए।

        (6) भूमि उपयोग की समन्वित योजनाएं लागू कर मृदा संरक्षण किया जा सकता है। इसके लिए भूमि का उनकी उत्पादक क्षमता के अनुसार वर्गीकरण करना आवश्यक है।

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