मुक्तक काव्य – मुक्तक काव्य महाकाव्य और खण्डकाव्य से भिन्न प्रकार का होता है। उसमें एक अनुभूति, एक भाव या कल्पना का चित्रण होता है। इसमें महाकाव्य या खण्डकाव्य जैसा प्रवाह न होने पर भी इनका वर्ण्य-विषय अपने में पूर्ण होता है। प्रत्येक छन्द स्वतन्त्र होता है;
जैसे-बिहारी, वन्द और रहीम के दोहे तथा सूर और मीरा के पद।
मुक्तक काव्य के दो भेद:- पाठ्य मुक्तक तथा गेय मुक्तक
पाठ्य मुक्तक- पाठ्य मुक्तक में विषय की प्रधानता होती है, किसी प्रसंग को लेकर भावानुभूति का चित्रण होता है और किसी-किसी में विचार अथवा रीति का वर्णन किया जाता है।
कबीर, तुलसी, रहीम के भक्ति एवं नीति के दोहे तथा बिहारी, मतिराम, देव आदि की रचनाएँ इसी कोटि में आती हैं।
गेय मुक्तक- इसे गीति या प्रगीति काव्य भी कहते हैं। यह अंग्रेजी के लिरिक का समानार्थी है।
इसमें भावप्रवणता, आत्माभिव्यक्ति, सौन्दर्यमयी कल्पना, संक्षिप्तता और संगीतात्मकता की प्रधानता होती है।