विंध्य पर्वतों के उत्तर में स्थित प्रायदवीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है।
मध्य उच्च भूमि का विस्तार:-
मध्य उच्च भूमि पश्चिम में चौड़ी लेकिन पूर्व में संकीर्ण है।
मध्य उच्चभूमि को भी पश्चिम से पूर्व विभिन्न पठारों में बांटा गया है।
मध्य उच्चभूमि के पश्चिमी भाग को ‘मालवा पठार’ के नाम से जाना जाता है तथा पूर्वी भाग को ‘छोटानागपुर के पठार’ के नाम से जाना जाता है और इन दोनों के मध्य में ‘बुंदेलखंड’ व ‘बघेलखंड का पठार’ पाया जाता है।
पश्चिम में अरावली पर्वत इसकी सीमा बनाते हैं।
इसके दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत उच्छिष्ट पठार की श्रेणियों से बना हैं जिनकी समुद्रतल से ऊँचाई 600 से 900 मीटर है।
ये दक्कन पठार की उत्तरी सीमा बनाते हैं।
ये अवशिष्ट पर्वतों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जो कि काफी हद तक अपरदित हैं और इनकी श्रृंखला टूटी हुई है।
प्रायद्वीपीय पठार के इस भाग का विस्तार जैसलमेर तक है जहाँ यह अनुदैर्ध्य रेत के टिब्बों और चापाकार (बरखान) रेतीले टिब्बों से ढके हैं।
अपने भूगर्भीय इतिहास में यह क्षेत्र कायांतरित प्रक्रियाओं से गुजर चुका है और कायांतरित चट्टानों, जैस- संगमरमर, स्लेट और नाइस की उपस्थिति इसका प्रमाण है।
समुद्र तल से मध्य उच्च भूभाग की ऊँचाई 700 से 1000 मीटर के बीच है और उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में इसकी ऊँचाई कम होती चली जाती है।
यमुना की अधिकतर सहायक नदियाँ विंध्याचल और कैमूर श्रेणियों से निकलती हैं।
बनास, चंबल की एकमात्र मुख्य सहायक नदी है, जो पश्चिम में अरावली से निकलती है।
मध्य उच्च भूभाग का पूर्वी विस्तार राजमहल की पहाड़ियों तक है जिसके दक्षिण में स्थित छोटा नागपुर पठार खनिज पदार्थों का भंडार है।