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jivtarachandrakant.
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- November 17, 2021 at 8:29 pm
भारत में उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी प्रकार की जलवायु पाई जाती हैभारत की जलवायु:- भारत एक उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु वाला देश है जिसमें मानसनी वर्षा जलवाय का प्रमुख आधार एवं महत्वपूर्ण निर्धारक कारक होती है। इसलिए अधिकांश विद्वानों ने अपने वर्गीकरण के मूल आधार के रूप में देश में वर्षा के वितरण को ही चुना है।
भारत को जलवायु प्रदेशों में विभाजित करने वाले विद्वानों में ब्लेनफोर्ड, विलियमसन, क्लार्क, कोपेन, ट्रिवार्था, थोर्नथ्वेट, केण्ड्रयू, स्टाम्प, काजी अहमद आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
उन्नीसवी शताब्दी के अन्त में ब्लेनफोर्ड ने सर्वप्रथम भारत के जलवाय् प्रदेशों का विवरण प्रस्तुत किया था। उनके अनुसार, “जलवायु की दृष्टि से भारत सर्वाधिक विभिन्नता प्रस्तुत करने वाला देश है।”
भारतीय जलवायु का तात्पर्य एक वर्ष के सामान्य औसत से कहीं अधिक है। यद्यपि वर्षा के अधिकांश समय यहाँ सूर्य काफी ऊंचाई पर रहता है परन्तु फिर भी यहाँ तापमान यूरोप की अपेक्षा कई अंश ऊँचा रहता है।
विलियमसन और क्लार्क ने सन् 1931 में वार्षिक वर्षा के वितरण को अपने वर्गीकरण का मूल आधार मानकर भारत को 13 जलवायु विभागों में विभाजित किया था।
कोपेन ने सन् 1918 में वर्षा की मात्रा एवं वनस्पति के आधार पर अपना विभाजन प्रस्तुत किया तथा लम्बे-लम्बे वर्णनों के स्थान पर सांकेतिक चिन्हों का प्रयोग किया।
सन् 1936 में थोर्नथ्वेट ने भी कोपेन की भाँति सांकेतिक प्रणाली को अपनाकर भारत को जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया है। इन्होंने वर्षा की मात्रा तथा वाष्पीकरण की मात्रा को अपने वर्गीकरण का प्रमुख आधार माना है। कोपेन की तुलना में थानथ्वेट विभाजन अधिक जटिल है।
ट्विार्था ने कोपेन के विभाजन में आवश्यक संशोधन कर भारत को 4 प्रमुख जलवायु विभागों में बॉटकर 7 उपविभागों में बाँटा है।
कोपेन का जलवायु विभाजन (Koppen’s Climatic Classification)
जर्मन के प्रख्यात जीवविज्ञानवेत्ता ब्लामिडिर कोपेन ने सन् 1918 में वनस्पति के आधार पर संसार के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया जिसमें बाद में उन्होंने क्रमश: सन् 1931 और 1936 में महत्वपूर्ण संशोधन एवं परिवर्तन किये।
आवश्यक संशोधनों के उपरान्त कोपेन के इस वर्गीकरण को नवीनतम विश्लेषण की संज्ञा दी गयी। कोपेन ने वार्षिक एवं मासिक औसत तापमान तथा वर्षा की मात्रा को अपने वर्गीकरण के प्रमुख आधारों के रूप में चुना।
प्राकृतिक वनस्पति को जलवायु की पूर्ण अभिव्यक्ति के रूप में माना। कोपेन का मत था कि वाष्पीकरण और वर्षा की मात्रा वनस्पति की उपज और विकास को पूर्ण रूप से प्रभावित करती है।
अत: किसी स्थान की वनस्पति को देखकर जिस पर तापमान व वर्षा का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, हम वहाँ की जलवायु का पता लगा सकते हैं। कोपेन के अनुसार, “जलवायु वनस्पति का सही मापदण्ड है।
कोपेन ने अपने वर्गीकरण में विस्तृत विवरणों के स्थान पर सांकेतिक अक्षरों का सत्र रूप में प्रयोग किया है।
कोपेन ने भारत को निम्नलिखित जलवायु विभागों में बाँटा है। सर्वप्रथम इन्होंने जलवायु के 5 वृहदखण्ड निर्धारित किये हैं जिन्हें अंग्रेजी के बड़े अक्षरों A, B, C, D और E द्वारा प्रकट किया है। इन वृहदखण्डों का वितरण निम्नलिखित है :
A- उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु
B- शुष्क जलवायु
c- उष्ण शीतोष्ण आर्द्र जलवायु
D – उपध्रुवीय जलवायु
E- ध्रुवीय जलवायु
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