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jivtaraankit.
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- October 10, 2021 at 12:45 pm
भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निजता का अधिकार संरक्षित है।जस्टिस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अन्तर्गत रखा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने 24 अगस्त, 2017 को निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है।
नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित जीवन के अधिकार का हिस्सा माना है. जिसे भारतीय संविधान के भाग-3 द्वारा गारण्टी प्रदान की गयी है।
इस प्रकार निजता का हनन करने वाला कानून संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का हनन है।
पिछले कुछ दशकों के पहले तक भारतीय समाज में आमतौर पर सामूहिक और सामुदायिक जीवन की परंपरा रही थी और व्यक्ति के निजी अधिकारों के प्रति अपेक्षाकत कम चेतना और संवेदनशीलता देखने को मिलती थी। लेकिन बढती आधनिकता और वैश्वीकरण के मल्यों के बीच भारत में भी व्यक्तिवाद और निजी मल्यों का प्रसार हो रहा है और निजता के अधिकार को यहां भी बल मिला है। भारतीय संविधान में निजता के अधिकार की अलग से चर्चा नहीं है। मूल अधिकारों के भाग में धारा 21 में ‘राइट टु लाइफ’ और ‘राइट टु लिबर्टी’ यानी ‘जीवन के अधिकार’ और ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ पर आधारित है। निजता का अधिकार इन्हीं मूल अधिकारों में समाया हआ है। इसके अनुसार हर व्यक्ति को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है और उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। उसे अपने जीवन को अपनी इच्छानुसार जीने का अधिकार है जिसमें मनोरंजन, धर्म-अध्यात्म, रचनात्मक गतिविधियां, पहनावा,खानपान आदि शामिल हैं।
हर नागरिक को अपने निजी जीवन और उससे जुड़े विषयों परिवार, शादी-ब्याह, तलाक, जन्मदिन, गम-खुशी, दोस्ती और छुट्टियां आदि अपने अनुसार मनाने का हक है और उसके एकांत में हस्तक्षेप करने और उसे भंग करने का अधिकार किसी को भी नहीं है और अगर कोई ऐसा करता है तो इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा।
निजता का तात्पर्य ये भी है कि नागरिक को अपने मामलों को नियमित करने का अधिकार और खुद ये तय करने का भी अधिकार है कि वो किस सीमा तक अपनी निजी बातों और मसलों को सार्वजनिक करना चाहता है और स्थान, समय और परिस्थितियों के सापेक्ष किन तथ्यों और सूचनाओं को प्रेस से साझा करना चाहता है और किन्हें नहीं ..ये उसका खुद का निर्णय होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि राइट टू प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार है। इस फैसले के बदले सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा कि निजता के अधिकार से क्या तात्पर्य है।
निजता का अधिकार निम्न परिस्थितियों के संदर्भ में इस्तेमाल होता है:
1. निजी दायरे में व्यक्तियों के अधिकार- एक नागरिक दूसरे नागरिकों और प्रेस से अपनी निजता की रक्षा करने का अधिकार रखता है।
2. राज्य के विरुद्ध सांविधानिक अधिकार- किस हद तक राज्य नागरिकों के निजी जीवन और उनसे जड़ी जानकारियों में दखल कर सकता है?
आधार कार्ड के निर्माण और जनगणना के दौरान नागरिकों के बारे में व्यक्तिगत जानकारियों के संकलन पर भी कई संगठनों ने आपत्ति की थी कि नागरिकों के निजता के अधिकार का हनन है। नागरिकों की गतिविधियों की निगरानी करने के लिये फोन टैपिंग या अन्य सर्विलांस का उपयोग निजता के अधिकार का हनन है।
निजता के अधिकार के हनन को सामान्यत: चार वर्गों में बांटा जा सकता हैं (‘एसेंशिअल्स ऑफ प्रैक्टिकल जर्नलिज्म,’ प्रो. वीरबाला अग्रवाल)
1. अप्रोप्रियेशन (उपयोग/इस्तेमाल)- किसी व्यक्ति या संस्था की इजाजत के बिना उसके नाम या फोटो का उपयोग किसी विज्ञापन या व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिये नहीं किया जा सकता है।
2. इंदूजन (अनधिकार प्रवेश/दखल/खलल)- किसी व्यक्ति के एकांत और संस्था के निषिद्ध घोषित परिसर में गैरजरूरी ढंग से खलल नहीं डाला जा सकता है। अगर कोई सेलेब्रेटी किसी जगह छुट्टिया मनाने गया या गयी है तो उसका या उनका पीछा करना या छुप कर या फिर किसी खुफिया कैमरे से उनकी तस्वीर लेना उसके निजता के हनन का अपराध है।
3.फॉल्स लाइट (निराधार/भ्रामक/गलत या अवांछित सूचना)- किसी व्यक्ति को उस विचार और अभिव्यक्ति के लिये दोषी नहीं ठहरा सकते हैं जो उसने सार्वजनिक किया ही न हो।
4. एंबैरेसिंग फैक्टस (शर्मिंदा करना)- किसी व्यक्ति के बारे में शर्मिंदा करने वाले तथ्यों को उजागर न किया जाए। जैसे किसी खिलाड़ी की कोई बीमारी हो गई हो जब तक कि वो स्वयं सार्वजनिक तौर पर इसका खुलासा न करें। अभिनेता और अभिनेत्रियों के निजी जीवन के बारे में भी मीडिया को कोई शर्मिदा करने वाला तथ्य उजागर करने का अधिकार नहीं है।
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Tagged: अनुच्छेद, निजता का अधिकार, भारत के संविधान
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