भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका से ली गई है |
संविधान की प्रकृति विकासशील एवं गतिशील होना किसी भी देश की शासन-व्यवस्था को व्यवस्थित एवं सुचारू रूप से चलाने के लिए अनिवार्य होता है।
यही कारण है कि भारतीय संविधान में भी अन्य संविधान की भांति संशोधन की प्रक्रिया को स्थान दिया गया है।
परन्तु भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया न तो ब्रिटेन के संविधान संशोधन प्रक्रिया की तरह अत्यधिक आसान है और न ही अमेरिका के संविधान संशोधन प्रक्रिया की तरह अत्यधिक जटिल है।
अर्थात् भारत के संविधान की प्रक्रिया न तो लचीला है न तो अत्यधिक कठोर वरन् यह दोनों का समिश्रण हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत भारत के संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को संसद के किसी भी एक सदन में आरम्भ किया जा सकता है, किन्तु संशोधन की प्रक्रिया के लिए दोनों सदनों के सदस्यों के बहुमत की आवश्यकता होती है।
मतदान की दशा में प्रत्येक सदन में उपस्थित सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा संशोधन प्रस्ताव की स्वीकृति अनिवार्य होती है।
संविधान में संशोधन 3 प्रकार से हो सकता है:-
1. साधारण बहुमत से –
- सदन में उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहमत से नागरिकता सम्बन्धी नये राज्यों का पुनर्गठन |
- जनजाति विकास आदि सम्बन्धी विषयों पर।
2. विशेष बहुमत द्वारा –.
- सदन की कुल सदस्य संख्या के आधे से अधिक तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई मत, दोनों में जो भी ज्यादा हो |
- मूल कर्तव्य, नीति-निदेशक तत्व आदि विषयों पर |
3. विशेष बहुमत + आधे राज्यों से अधिक का विधान सभाओं द्वारा स्वीकति :-
- राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली, 7वीं अनुसूची में परिवर्तन, अनु. 368 में संशोधन आदि विषयों पर |
- संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा या राज्यसभा दोनों में किसी भी सदन में लाया जा सकता है |
- संविधान संशोधन विधेयक पर निर्णय के लिए लोकसभा एवं राज्यसभा की संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जा सकती |