- This topic has 1 reply, 2 voices, and was last updated 1 year, 3 months ago by
jivtarachandrakant.
- Post
- उत्तर
-
-
- December 11, 2021 at 4:08 pm
बिरसा मुंडा ‘मुंडा विद्रोह’ के नायक थेस्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतभूमि पर ऐसे कई नायक पैदा हुए, जिन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवाया। एक छोटी सी आवाज को नारा बनने में देर नहीं लगती, बस दम उस आवाज को उठानेवाले में होना चाहिए और इसकी जीती-जागती मिसाल थे
बिरसा मुंडा। बिरसा मुंडा ने बिहार और झारखंड के विकास तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। अपने कार्यों और आंदोलन की वजह से बिहार और झारखंड में लोग बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजते हैं।
बिरसा मुंडा ने ‘मुंडा विद्रोह’ पारंपरिक भू-व्यवस्था के जमींदारी व्यवस्था में बदलाव लाने के कारण किया। बिरसा मुंडा ने अपनी सुधारवादी प्रक्रिया के तहत सामाजिक जीवन में एक आदर्श प्रस्तुत किया।
उन्होंने नैतिक आचरण की शुद्धता, आत्म-सुधार और एकेश्वरवाद का उपदेश दिया। उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकारते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान न देने का आदेश दिया था।
बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में लिहतु, जो राँची में पड़ता है में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढ़ने आए। सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा के मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बचपन से ही विद्रोह था।
बचपन में मुंडा एक बेहद चंचल बालक थे। अंग्रेजों के बीच रहते हुए वे बड़े हुए। बचपन का अधिकतर समय उन्हेंने अखाड़े में बिताया, हालाँकि गरीबी की वजह से उन्हें रोजगार के लिए समय-समय पर अपना घर बदलना पड़ा।
इसी भूख की दौड़ ने ही उन्हें स्कूल की राह दिखाई और उन्हें चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढ़ने का मौका मिला।
चाईबासा में बिताए चार सालों ने बिरसा मुंडा के जीवन पर गहरा असर डाला। 1895 तक बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रूप में उभरने लगे, जो लोगों में जागरूकता फैलाना चाहते थे।
1894 में आए अकाल के दौरान बिरसा मुंडा ने अपने मुंडा समुदाय और अन्य लोगों के लिए अंग्रेजों से लगान माफी की माँग के लिए आंदोलन किया।
1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गई, लेकिन बिरसा मुंडा एवं उनके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और यही कारण रहा कि अपने जीवन काल में ही उन्हें एक महापुरुष का दर्जा मिला।
उन्हें उस इलाके के लोग ‘धरती बाबा’ के नाम से पुकारा एवं पूजा करते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी। 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे, बिरसा और उसके चाहनेवाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया।
अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से सुसज्जित होकर खूटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिडंत अंग्रेजी सेनाओं से हुई, जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई, लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियाँ हुई।
जनवरी 1900 में जहाँ बिरसा अपनी जनसभा संबोधित कर रहे थे, वहाँ डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था, जिसमें बहुत सी औरतें और बच्चे मारे गए तथा बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारी भी हुई थी।
अंत में स्वयं बिरसा 3 फरवरी, 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ्तार हुए बिरसा ने अपनी अंतिम साँस 9 जून, 1900 को राँची कारागार में ली। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा भगवान् की तरह पूजे जाते हैं।
-
Tagged: बिरसा मुंडा, स्वतंत्रता आंदोलनकरी
- You must be logged in to reply to this topic.