बदलू
मनिहार था।
चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा/व्यवसाय था और वास्तव में वह बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ बनाता था।
उसकी बनाई हुई चूड़ियों की खपत भी बहुत थी।
उस गाँव में तो सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ पहनती ही थीं।
आस-पास के गाँवों के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते थे।
परंतु वह कभी भी चूड़ियों को पैसों से बेचता न था।
उसका अभी तक वस्तु-विनिमय’ का तरीका था और लोग अनाज के बदले उससे चूड़ियाँ ले जाते थे।
बदलू स्वभाव से बहुत सीधा था।
लेखक लिखते है की –
“मैंने कभी भी उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा।
हाँ, शादी-विवाह के अवसरों पर वह अवश्य ज़िद पकड़ लेता था।
जीवनभर चाहे कोई उससे मुफ़्त चूड़ियाँ ले जाए परंतु विवाह के अवसर पर वह सारी कसर निकाल लेता था।
आखिर सुहाग के जोडे का महत्त्व ही और होता है|
मुझे याद है, मेरे मामा के यहाँ किसी लड़की के विवाह पर ज़रा-सी किसी बात पर बिगड़ गया था और फिर उसको मनाने में लोहे लग गए थे।
विवाह में इसी जोड़े का मूल्य इतना बढ़ जाता था कि उसके लिए उसकी घरवाली को सारे वस्त्र मिलते, ढेरों अनाज मिलता, उसको अपने लिए पगडी” मिलती और रुपए जो मिलते सो अलग।
यदि संसार में बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो वह थी काँच की चूड़ियों से।
यदि किसी भी स्त्री के हाथों में उसे काँच की चूड़ियाँ दिख जाती तो वह अंदर-ही-अंदर कुढ़ उठता और कभी-कभी तो दो-चार बातें भी सुना देता।”