फ्रांस में दास प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के सामाजिक सुधारों से हुआ था |
यह जैकोबिन शासन के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था ।
कैरिबिआई उपनिवेश मार्टिनिक, गॉडिलोप और सैन डोमिंगों तम्बाकू, नील, चीनी एवं कॉफ़ी जैसी वस्तुओं के महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे।
अपरिचित एवं दूर देश जाने और काम करने के प्रति यूरोपियों की अनिच्छा का मतलब था बागानों में श्रम की कमी। इस कमी को यूरोप, अफ्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दासव्यापार द्वारा पूरा किया गया।
दास-व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में शुररु हुआ। फ्रांसीसी सौदागर बोर्दे या नान्ते बन्दरगाह से अफ्रीका तट पर जहाज़ ले जाते थे, जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे।
दासों को दाग कर एवं हथकड़ियाँ डाल कर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक तीन माह की लंबी समुद्री-यात्रा के लिए जहाजों में दूंस दिया जाता था। वहाँ उन्हें बागान-मालिकों को बेच दिया जाता था।
दास-श्रम के बल पर यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफ़ी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ। बोर्दे और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते-फूलते दास-व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए।
अठारहवीं सदी में फ्रांस में दास-प्रथा की ज्यादा निंदा नहीं हुई। नैशनल असेंबली में लंबी बहस हुई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसीसी प्रजा को प्रदान किए जाएँ या नहीं। परन्तु दास-व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नैशनल असेंबली में कोई कानून पारित नहीं किया गया।
लेकिन अंतत: सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया। पर यह कानून एक छोटीसी अवधि तक ही लागू रहा।
दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास-प्रथा पुनः शुरु कर दी। बागान-मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ़्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गयी। फ्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास-प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया।