प्रोपेगेंडा शब्द हिंदी शब्द ‘प्रचार’ का अंग्रेजी रूपान्तर है।
यह शब्द लैटिन के ‘Propagare’ शब्द से निकला है जिसका अर्थ उगाना, बढ़ाना या विकास करना है।
इस अर्थ में प्रचार एक कृत्रिम विधि है, जिसके द्वारा हम किसी भी चीज को जानबूझकर उत्पन्न करते हैं या उसे फैलाते हैं।
यह कार्य स्वाभाविक रूप से या प्राकृतिक ढंग से नहीं होता, बल्कि अस्वाभाविक तथा बाध्यतामूलक ढंग से किया जाता है। श्री लूमले (Lumley) ने प्रचार के इसी शाब्दिक अर्थ की विवेचना करते हुये कहा है कि “प्रचार अपने-आप जन्म नहीं लेता, वरन् यह विवश उत्पत्ति है।”1 इसका तात्पर्य यह हुआ कि प्रचार के द्वारा कुछ विचारों, विश्वासों या व्यवहार-प्रतिमानों (behaviour pattern) को पनपाने तथा उनको प्रसारित करने का सचेत प्रयत्न किया जाता है। कुछ परिभाषाओं से प्रचार का यह अर्थ और भी स्पष्ट हो जायेगा।
श्री डूब (Doob) ने प्रचार की परिभाषा करते हुये कहा है कि “प्रचार सम्बन्धित व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के द्वारा, सुझावों की सहायता से, व्यक्तियों के समूहों की मनोवृत्तियों तथा क्रियाओं को नियन्त्रित करने का एक क्रमबद्ध प्रयत्न है।”
श्री किम्बाल यंग (Kimball Young) के अनुसार, “पहले मतों, विचारों तथा मूल्यों को बदलने व नियन्त्रित करने और अन्तिम रूप में बाह्य क्रियाओं को पूर्व-निश्चित दिशाओं में परिवर्तित करने के उद्देश्य से
मुख्यतः सुझावों व उससे सम्बन्धित मनोवैज्ञानिक प्रविधियों के माध्यम से प्रतीक के बहुत-कुछ जानबूझकर आयोजित व क्रमबद्ध प्रयोग को प्रचार कहते हैं।”।
श्री लासवैल (Lasswell) ने भी इस सम्बन्ध में कहा है, “सर्वाधिक विस्तृत अर्थ में, प्रचार प्रतिनिधित्वों (representations) के कुशलतापूर्वक प्रयोग द्वारा मानव-क्रिया को प्रभावित करने की प्रविधि है।”
श्री अकोलकर (Akolkar) के शब्दों में, “प्रचार व्यक्ति या समूह द्वारा जनमत तथा अन्य किसी भी प्रकार की मनोवृत्तियों को प्रभावित करने का एक व्यवस्थित या क्रमबद्ध प्रयत्न है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि प्रचार सुझाव प्रस्तुत करने का वह सचेत व पूर्वायोजित कार्यक्रम है जिसका कि उद्देश्य व्यक्तियों के विचारों, रूचियों, मतों आदि को इस भाँति प्रभावित करना है कि लोग एक निश्चित ढंग से क्रिया या व्यवहार करें।