पद परिचय किसे कहते हैं

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      jivtaraankit
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        वाक्य में प्रयुक्त प्रत्येक सार्थक शब्द पद कहलाता हैं , तथा उन शब्दों के व्याकरणीय परिचय को पद परिचय कहते हैं।

        पद परिचय में उस शब्द के उपभेद, भेद, वचन, लिंग, कारक आदि के परिचय के साथ, वाक्य में प्रयुक्त अन्य पदों के साथ उसके संबंध का भी उल्लेख किया जाता है।

        वाक्‍यों में प्रयुक्त शब्दों में संज्ञा , सर्वनाम , विशेषण , क्रिया, विशेषण , संबंधबोधक आदि अनेक शब्द होते हैं। पद परिचय में यह बताना होता है कि इस वाक्य में व्याकरण की दृष्टि से क्या-क्या प्रयोग हुआ है।

        पद परिचय – उदाहरण के साथ

        वह सेब खाता है

        वह  -पुरुषवाचक सर्वनाम अन्य पुरुष एकवचन पुल्लिंग कर्ता कारक

        सेब – जातिवाचक संज्ञा एकवचन पुल्लिंग कर्म कारक

        खाता है – सकर्मक क्रिया एकवचन पुल्लिंग कृत वाच्य वर्तमान काल

        पद-परिचय के समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

        (1) प्रत्येक पद को अलग-अलग करना।

        (2) प्रत्येकपद का प्रकार व भेदोपभेद बताना।

        (3) वाक्य में दूसरे पदों से उसका संबंध बताना।

        (4) वाक्य में उसका कार्य बताना।

        (5) पद-परिचय के समय व्याकरण का सार प्रस्तुत करना पड़ता है।

        पद परिचय के आवश्यक संकेत

        1. संज्ञा  – संज्ञा के भेद (जातिवाचक व्यक्तिवाचक भाववाचक) ,

        2 .लिंग ( पुल्लिंग स्त्रीलिंग)

        3. वचन( एकवचन बहुवचन)

        4. कारक तथा क्रिया के साथ संबंध

        5. सर्वनाम  – सर्वनाम के भेद (पुरुषवाचक , निश्चयवाचक , अनिश्चयवाचक , प्रश्नवाचक , संबंधवाचक , निजवाचक)

        6. लिंग वचन कारक क्रिया के साथ संबंध

        7. विशेषण  – विशेषण का भेद (गुणवाचक ,संख्यावाचक ,परिमाणवाचक,सार्वनामिक)

        8. विशेष्य लिंग वचन

        9. क्रिया  – क्रिया का भेद (अकर्मक , सकर्मक , प्रेरणार्थक , संयुक्त , मुख्य सहायक)

        10. वाक्य लिंग वचन काल धातु

        11. अवयव  – अवयव का भेद( क्रिया , विशेषण , संबंधबोधक , समुच्चयबोधक , विस्मयादिबोधक , निपात) जिस क्रिया की विशेषता बताई जा रही है उसका निर्देश , समुच्चयबोधक , संबंधबोधक , विस्मयादिबोधक , भेद तथा उसका संबंध निर्देश आदि बताना होगा।

        हिन्दी व्याकरण में 8 प्रकार के पद परिचय होते है जो की नीचे बताया गया हैं –

        (1) संज्ञा का पद-परिचय : इसमें संज्ञा का भेद, लिंग, वचन, कारक एवं क्रिया के साथ उसका संबंध बताना चाहिए।

        जैसे-आशतोष आगरा में रहता है। इस वाक्य में दो संज्ञा पद हैं।

        आइए, उनका क्रम से पद-परिचय करें

        आशुतोष – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिग, एकवचन, कर्ता कारक, ‘रहता है’ क्रिया का कर्ता।

        (2) सर्वनाम का पद-परिचय : इसमें सर्वनाम का भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक तथा क्रिया के साथ संबंध बताना चाहिए।

        जैसे-वह रविवार तक वापस आ जाएगा।

        वह – पुरुषवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, पुल्लिग, एकवचन, कर्ता कारक तथा ‘वापस आ जाएगा’ क्रिया का कर्ता।

        (3) विशेषण का पद-परिचय : इसमें विशेषण का भेद, लिंग, वचन, अवस्था तथा जिसकी विशेषता बता रहा है-उस विशेष्य का उल्लेख करना चाहिए। केवल गुणवाचक विशेषण पदों में विशेषण की तीन अवस्थाओं-मूलावस्था, उत्तरावस्था और उत्तमावस्था का उल्लेख करें।

        जैसे-वीर शिवाजी ने मुगलों के दाँत खट्टे किए।

        वीर – गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, एकवचन, मूलावस्था तथा इसका विशेष्य ‘शिवाजी’।

        (4) क्रियापदों का पद-परिचय : क्रिया का पद-परिचय करते समय उसके मुख्य दो भेद-अकर्मक और सकर्मक तथा अन्य भेद-संयुक्त क्रिया, प्रेरणार्थक क्रिया, नामधातु क्रिया अथवा पूर्वकालिक क्रिया भी बताएँ।

        इसके बाद क्रिया का काल, लिंग, वचन, वाच्य (कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य, भाववाच्य) तथा कर्ता, कर्म, करण आदि कारकों से संबंध भी लिखें।

        (5) क्रियाविशेषण का पद-परिचय : इसमें केवल दो बातें लिखनी चाहिए-(i) क्रियाविशेषण का भेद (स्थानवाचक, कालवाचक, रीतिवाचक, परिमाणवाचक) तथा

        (ii) वह क्रिया, जिसकी विशेषता बताई जा रही है।

        जैसे-बच्चा जोर-जोर से रो रहा है।

        ज़ोर-ज़ोर से – रीतिवाचक क्रियाविशेषण, ‘रो रहा है’ क्रिया की विशेषता प्रकट की जा रही है। 

        (6) संबंधबोधक का पद-परिचय : इसमें भी केवल दो बातों का उल्लेख करना चाहिए

        (1) भेद-कालवाचक, स्थानवाचक,दिशावाचक, कारणवाचक, साधनवाचक, तुलनावाचक, उद्देश्यवाचक, विरोधवाचक

        अथवा समानतावाचक।

        (2) संबंध-संबंधी शब्द।

        जैसे-विद्यालय के चारों ओर हरे-भरे पेड़ हैं।

         चारों ओर – दिशावाचक संबंधबोधक,

        ‘विद्यालय’ और ‘हरे-भरे पेड़ के बीच संबंध जोड़ रहा है। 

        (7) समुच्चयबोधक अथवा योजक का पदपरिचय : इसमें भी मुख्य रूप से दो बातें लिखनी चाहिए

        (i) भेद-समानाधिकरण अथवा व्यधिकरण।

        (ii) योजित शब्द या वाक्य-जिन्हें वह मिलाता है।

        जैसे-मोहन बीमार है इसलिए विद्यालय नहीं आ सका।

        इसलिए – समानाधिकरण समुच्चयबोधक, परिणामवाचक योजक-‘मोहन बीमार है’ और ‘विद्यालय नहीं आ सका’-इन दो वाक्यों को जोड़ता है। 

        (8) विस्मयादिबोधक का पद-परिचय : इसमें केवल वह कौन-सा भाव व्यक्त कर रहा है, यह बताना होता है।

        जैसे-अरे वाह! तुम्हें गणित में शत प्रतिशत अंक मिले! अरे वाह! प्रशंसासूचक विस्मयादिबोधक अव्यय है।

        इससे हर्ष का भाव व्यक्त हो रहा है।

         

         

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