निबंध के दो प्रधान अंग भूमिका और उपसंहार हैं
निबंध का आरंभिक भाग उसकी भूमिका या प्रस्तावना होती है। भूमिका इतनी प्रभावशाली और रोचक होनी चाहिए कि पाठक निबंध पढ़ने को आतुर हो उठे और भूमिका निबंध का ही अंग लगे। यह सरल, सुबोध व रुचिकर हो तथा निबंध का प्रथम सोपान प्रतीत हो।
भूमिका के बाद निबंध के विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं। ये गद्यांश विषय का क्रमबद्ध विश्लेषण व प्रस्तुतीकरण हों। निबंध के मूल भाव से लेखक को भटकना नहीं चाहिए।
प्रत्येक गद्यांश निबंध के सूत्र में इस तरह पिरोया जाना चाहिए कि संपूर्ण निबंध व्यवस्थित चिंतन का सूत्रबद्ध प्रवाह लगे।
निबंध के अंत में उपसंहार होता है। यह निबंध का अंतिम व महत्त्वपूर्ण चरण है। उपसंहार समस्त निबंध का निष्कर्ष तथा निचोड़ होता है। यह इस प्रकार लिखा जाना चाहिए कि जिस विषय पर निबंधकार कहना चाहता है, उसका सार पाठक तक प्रेषित हो जाए और उसपर स्थायी प्रभाव पड़े।
निबंध के इस भाग में उन सारे बिंदुओं का निष्कर्ष दिया जाता है, जिनका उल्लेख निबंध में किया गया है। यह निबंध का समापन भाग है और इसमें निबंध के उद्देश्य को भी प्रकट किया जाता है।
निबंध के इन दोनों भागों के बीच में निबंध का मूल भाग होता है, जिसमें विस्तार से संबंधित विषय का विवेचन किया जाता है।