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monu.
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- August 7, 2021 at 10:09 am
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- August 10, 2021 at 10:08 am
यद्यपि विवाह के माध्यम से अनेक निकट-सम्बन्धियों या रिश्तेदारों का उद्भव होता है, फिर भी अनेक रिश्तेदारों से विवाह-सम्बन्ध स्थापित करने की मनाही भी होती है।दूसरे शब्दों में, प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में अति निकट के सम्बन्धियों से विवाह-सम्बन्ध या यौन सम्बन्ध स्थापित करना निषिद्ध होता है।
इस नियम को ही निकटाभिगमन या निषिद्ध निकटाभिगमन नियम (incest regulation) कहते हैं।
वैसे तो इस नियम के कुछ अन्य व्यक्ति भी होते हैं, परन्तु सामान्यतः पिता और पुत्री में, माता और पुत्र में तथा सगे भाई और बहनों में विवाह प्रायःसभी समाजों में निषिद्ध है।
परन्तु साथ ही यह स्मरण रहे कि कुछ समाज ऐसे भी हैं जहाँ निकट-सम्बन्धियों से विवाह करने का ही नियम है।
उदाहरणार्थ, पेरूके इन्का (Inca), प्राचीन मिश्र देशवासी तथा हवाई प्रायद्वीप के अनेक घरानों में निकट सम्बन्धियों से ही विवाह करने का नियम पाया जाता है।
ये लोग अपने को कुलीन (nobles) कहते हैं और इसलिए अपने में विशुद्ध कुलीन रक्त को बनाए रखने के लिए भाई-बहनों में भी विवाह-सम्बन्ध स्थापित करने की केवल मान्यता ही नहीं देते बल्कि ऐसे विवाह-नियम को ही अनिवार्य रूप से लागू करते हैं।
इनमें यह विश्वास है कि इस प्रकार का विवाह साधारण विवाह नहीं है, इस कारण यह असाधारण अर्थात् अत्यधिक कुलीन व्यक्तियों को ही शोभा देता है।
इसलिए इन समूहों में भी सब लोगों को नहीं, बल्कि कुछ विशेष या असाधारण व्यक्तियों को ही इस प्रकार के विवाह करने की आज्ञा दी जाती है।
अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक समाज ही निकटाभिगमन (incest) को परिभाषित तथा निषिद्ध करता है, परन्तु यह परिभाषा और निषेध प्रत्येक समाज में समान नहीं हुआ करता।
इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस प्रकार के निषेध किन्हीं प्राणिशास्त्रीय विचारों (biological consideration) से प्रभावित नहीं होते।
सच तो यह है कि निकटाभिगमन के प्राणिशास्त्रीय परिणाम क्या हो सकते हैं? इसका अनुमान लगाना ही जनजातीय लोगों के लिए असम्भव है।
फिर भी इस प्रकार के निषेधों का अस्तित्व, संस्कृति के अन्य पक्षों की भाँति, इसलिए बना रहता है कि इससे कुछ सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
इस कारण यौन सम्बन्ध स्थापित करने के सम्बन्ध में कुछ-न-कुछ नियम प्रत्येक समाज में ही पाए जाते हैं।
साधारणत: यौन सम्बन्ध की सीमा पति-पत्नी तक ही सीमित रहती है।
अन्य किसी के साथ इस प्रकार के सम्बन्ध धार्मिक तथा अन्य आधारों पर वर्जित होते हैं।
कहा जाता है कि इस प्रकार का निषेध इस कारण होता है कि एक ही परिवार के सभी सदस्य जब बहुत दिनों तक एक साथ घनिष्ठ रूप से रहते हैं तो उनमें परस्पर यौन सम्बन्धी आकर्षण समाप्त हो जाता है और इसलिए वे यह पसन्द करते हैं कि विवाह इन अति निकट-सम्बन्धियों के दायरे से बाहर ही हो।
परन्तु यह उपकल्पना (hypothesis) सत्य प्रतीत नहीं होती।
अगर ऐसा ही होता तो निकटाभिगमन-सम्बन्धी निषेधों की आवश्यकता ही नहीं होती।
अगर यौन सम्बन्धी आकर्षण समाप्त ही हो जाता है तो क्या कारण है कि कुछ अपवादों को छोड़कर सर्वत्र भाई-बहन, पिता-पुत्री, माता-पुत्र के बीच विवाह-सम्बन्ध या यौन सम्बन्ध स्थापित करने के नियमों को इतनी कठोरता से लागू किया जाता है और इन्हें तोड़ने पर कठोरतम दण्ड की व्यवस्था भी की जाती है।
ह्वाइट (White) का तो कहना है कि एकसाथ घनिष्ठ रूप से रहने से यौन सम्बन्धी आकर्षण घटने के बजाय बढ़ भी सकता है।
अन्त में यह भी विचारणीय है कि निकटाभिगमन सम्बन्धी निषेध प्रायः उन लोगों पर भी लागू होते हैं जोकि एक परिवार में एकसाथ नहीं रहते हैं।
उदाहरणार्थ, छिरिकाहुआ अपाछी (Chiricahua Apachee) लोगों में दूर के चचेरे तथा ममेरे भाई-बहनों में विवाह-सम्बन्धी निषेध, उतने ही कठोर हैं जितने कि सगे भाई-बहनों में नाभाहो (Navaho) जनजाति में यह निषेध पूरे गोत्र के सदस्यों के लिए लागू होता है जोकि बिल्कुल एक-दूसरे से अलग विभिन्न परिवार में रहते हैं।
क्लूखौन (Kluckhohn) ने लिखा है कि इस जनजाति में एक गोत्र के दो युवक-युवती के लिए एक-दूसरे से लिपटकर नाचना तक भी निषिद्ध है।
अतः स्पष्ट है कि निकटाभिगमन के निषेध न तो प्राणिशास्त्रीय और न ही मनोवैज्ञानिक कारकों के कारण हैं। जैसाकि लिण्टन ने लिखा है प्राणिशास्त्रीय दृष्टिकोण से अतिनिकट-सम्बन्धियों में भी यौन सम्बन्ध या सन्तानोत्पत्ति हानिकारक नहीं है।
उसी प्रकार इस तरह के निषेध कुछ मनोवैज्ञानिक कारण हो तो सकते हैं, पर वे इतने शक्तिशाली नहीं हैं कि उनके आधार पर इस सार्वभौम घटना
(universal phenomena) की यथार्थ व्याख्या सम्भव हो सके।उसी प्रकार इन निषेधों की व्याख्या किसी एक सामाजिक कारण के आधार पर भी सम्भव इसलिए नहीं है कि इन निषेधों के अनेक विविध रूप विभिन्न समाजों में देखने को मिलते हैं।
इसलिए यह कहना ही उचित होगा कि निकटाभिगमन के निषेधों का उद्भव सम्भवतः उपर्युक्त सभी कारणों के मिलने से हुआ है।
यौन सम्बन्धों को नियमित करना या एक सीमित सीमा के अन्दर रखना सामाजिक संगठन या व्यवस्था को कायम रखने के दृष्टिकोण से आवश्यक है क्योंकि केवल यौन सम्बन्ध के अनियमित होने से समस्त समाज में विघटन उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है।
मैलिनोवस्की ने स्पष्ट ही लिखा है कि यदि कामोत्तेजनाओं को परिवार के सीमाक्षेत्र पर अधिकार जमाने दिया जाए तो उसका परिणाम केवल परिवार में ईर्ष्याओं का फैलना, प्रतियोगिताओं का बढ़ना और अन्त में पारिवारिक विघटन होना ही न होगा बल्कि यह उन आधारभूत बन्धनों को भी तोड़-फोड़ डालेगा जोकि सामाजिक संगठन, एकता तथा प्रगति के लिए आवश्यक है।
वह समाज, जो निकटाभिगमन की आज्ञा देता है, कदापि स्थिर तथा संगठित परिवारों को विकसित नहीं कर सकता और यदि समाज का परिवार-रूपी प्राथमिक आधार ही टूट गया तो सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था का नष्ट-भ्रष्ट हो जाना तो आश्चर्य नहीं।
यह बात आदिम समाजों के लिए और भी सत्य है क्योंकि इन समाजों में परिवार ही सम्पूर्ण समुदाय का सबसे निर्भरयोग्य आधार है।
अतः स्पष्ट है कि निकटाभिगमन के निषेध पारिवारिक तथा सामाजिक संगठन को बनाए रखने के उद्देश्य से लागू किए जाते हैं।
साथ ही इस प्रकार के निषेधों के होने से लोग अपने परिवार में नहीं बल्कि दूसरे परिवारों में से अपना विवाह-साथी ढूँढ़ते हैं।
इसका परिणाम यह होता है कि विभिन्न परिवारों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है और वे एक-दूसरे के साथ बंध जाते हैं।
इससे एक ओर सामाजिक संघर्ष की सम्भावनाएँ कम हो जाती हैं और दूसरी ओर आर्थिक सहकार की श्रृंखला भी जुड़ने लगती है।
यौन सम्बन्धों को नियमित करना या एक सीमित सीमा के अन्दर रखना सामाजिक संगठन या व्यवस्था को कायम रखने के दृष्टिकोण से आवश्यक है क्योंकि केवल यौन सम्बन्ध के अनियमित होने से समस्त समाज में विघटन उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है।
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Tagged: Jivtara
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