नानावटी आयोग का गठन 2002 को हुआ था
27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जलाने की घटना के प्रतिक्रियास्वरूप समूचे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
28 फरवरी 2002 गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का जिनमें 1200 से अधिक लोग मारे गए।
3 मार्च 2002 गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आंतकवाद निरोधक अध्यादेश लगाया गया।
6 मार्च 2002 गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्दचारी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हई घटनाओं की जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की।
9 मार्च 2002 पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भा0द0सं0 की धारा 120-बी लगाई।
इसकी जांच के लिए तीन मार्च 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया।
शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया।
लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया। आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों व वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की।
आयोग ने सितंबर 2008 में गोधरा कांड पर अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी।
उस समय आयोग ने साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या-छह में आग लगाने को सुनियोजित साजिश का परिणाम बताया था।
पिछले 12 साल में आयोग का 24 बार कार्यकाल बढ़ाया गया और एक आरटीआइ मुताबिक पूरी जांच में सात करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए।
आयोग ने 45 हजार शपथ पत्र व हजारों गवाहों के बयान के बाद करीब ढाई हजार पेज की रिपोर्ट तैयार की और इसे 18 नवंबर 2014 को मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दिया गया। अब इस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा जाएगा।