‘धूल’ पाठ में लेखक ने धूल की भौतिक आवश्यकताओं के साथ-साथ उसके सांस्कृतिक महत्त्व को भी रेखांकित किया है। पाठ में धूल के गुणकारी धर्मो को प्रतिपादित किया गया है। धूल के माध्यम से लेखक ने यह समझाने का प्रयास किया है कि धूल के समान अनाकर्षक वस्तुओं की महत्ता अपने आप में स्पष्ट है परंतु कुछ शिष्ट लोग धूल युक्त प्राकृतिक वस्तुओं की अपेक्षा चमकदार कृत्रिम वस्तुओं की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। उन्हें हीरे और काँच के बीच का अंतर नहीं मालूम।