देश में वन महोत्सव की शुरूआत कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने की थी।
वन महोत्सव नाम का अर्थ है ‘पेड़ों का त्योहार’।
वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए 1950 कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने इसकी शुरूआत की थी।
पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करने वाला एक आंदोलन था।
इस महोत्सव में पेड़ लगाने का कार्य किया जाता है ।
वनों को बचाने के लिए ,हमारे द्वारा काटे गए वृक्षों पर नाना प्रकार के पक्षियों का बसेरा होता था। शाखाओं, पत्तों, जड़ों एवं तनों पर अनेक कीट-पतंगों, परजीवी अपना जीवन जीते थे एवं बेतहाशा वनों की कटाई से नष्ट हुए प्राकृतीक आवास के कारण कई वन्य प्राणी लुप्त हो गए एवं अनेक विलोपन के कगार पर हैं। भूमि के कटाव को रोकने में वृक्ष-जड़ें ही हमारी मदद करती हैं।
वृक्ष हमारे जीवन में एहम भूमिका निभाते हैं यह हमारे द्वारा छोड़े गए कार्बनडाईऑक्साइड गैस को खींच लेते हैं और हमें ऑक्सीजन देते हैं। इसीलिए भविष्य में वातावरण को संतुलन बनाए रखने के लिए वृक्ष लगाना आवश्यक है। वृक्ष ही भूमि को बंजर होने से रोकते हैं। वृक्षों से ही कई प्रकार की जड़ी बूटियां तैयार की जाती हैं। इसीलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए वन महोत्सव का मुख्य उदेश्य लोगों को पेड़ों के प्रति जागरूक करना है ।
वन महोत्सव जुलाई के पहले सप्ताह में मनाया जाता है ,भारत में एक वार्षिक पेड़ लगाकर वन महोत्सव त्योहार मनाया जाता है ।
वन महोत्सव सप्ताह में पूरे भारत भर में लगाए जाता हैं . कार्यालयों , स्कूलों , कॉलेजों आदि में जागरूकता अभियान विभिन्न स्तरों पर आयोजित की जाती हैं .