दीप वंश और महा वंश नामक ग्रंथ का संबंध
बौद्ध धर्म से है
दीप वंश और महा वंश नामक ग्रंथ श्रीलंका (सिंहलद्वीप) का इतिहास ग्रन्थ है।
श्रीलंका का प्राचीन इतिहास दर्शाते समय स्थान-स्थान पर भारत तथा उसके इतिहास का उल्लेख किया गया है।
दीपवंश एवं महावंश – बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को लंका भेजा था। लंका में ‘अट्ठकथा महावंश’ नामक एक विशाल ग्रंथ लिखा गया। दुर्भाग्यवश यह ग्रंथ उपलब्ध नहीं है, किंतु इस पर आधारित दो ग्रंथ ‘दीपवंश’ व ‘महावंश’ उपलब्ध हैं।
महावंश ग्रन्थ की रचना भदन्त महानामा द्वारा सम्भवत: पाँचवीं-छ्ठी शती. ई. में की गई थी। महावंश ग्रन्थ की रचना पालि भाषा में की गई है।
महावंश की टीका ‘वसंत दीपनी’ में चंद्रगुप्त के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इसकी रचना 12वीं सदी में हुई थी।
महावंश और दीपवंश के अनुसार अशोक ने तृतीय बौद्ध संगीति बुलाई और मोग्गलिपुत्त तिस्स की सहायता से संघ में अनुशासन और एकता लाने का प्रयास किया।
इसी बौद्ध संगीति में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने ‘कथावस्तु’ नामक ग्रंथ का संकलन किया जो ‘अभिधम्म पिटक’ का ही अंग है। इसी संगीति में, जो पाटलिपुत्र में हुई थी। ‘अभिधम्म पिटक’ नामक तीसरा पिटक जोड़ा गया।
सिंहली अनुश्रुतियों, दीपवंश एवं महावंश के अनुसार, अशोक को उसके शासन के चौथे वर्ष निग्रोध नामक भिक्षु ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। दिव्यावदान अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को देता है।
मौर्य वंश के इतिहास के संदर्भ में इन ग्रंथों का अत्यधिक महत्त्व है। इन ग्रंथों में अशोक एवं उसके पूर्वजों के संबंध में विस्तृत विवरण मिलता है। इसके अलावा सम्राट अशोक की तिथि के निर्धारण में भी ‘महावंश‘ का विशेष योगदान रहा है।