तुकांत शब्द किसे कहते हैं

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    koyli
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        jivtaraankit
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          किसी पद्य या कविता की पंक्ति का आखरी अक्षर की मात्रा सभी पंक्तियों में समान होती है उसे हम तुकांत कहते हैं

          उदाहरण – तुकांत शब्द वह शब्द होता है जिस शब्द का अंतिम वर्ण समान हो

          जैसे कि हम – तुम यह दोनों शब्दों में दोनों शब्द का अंतिम वर्ण सामान है तो हम इस शब्द को तुकांत कह सकते हैं.

          तुकांत शब्‍दों के उदा‍हरण है

          खाना – पीना

          नाचना – गाना

          आओ – जाओ

          उठो – बैठो

          तुकांत शब्दों का उपयोग हिंदी साहित्य और काव्यों में सुन्दरता लाने के उद्देश्य से होता हैं. तुकांत शब्द दोहों, और पद्य की शोभा बढ़ाते हैं. इसके साथ ही फ़िल्मी गानों में भी लय, सुर और तार को बनाए रखने के लिए तुकांत शब्द का प्रयोग होता हैं.

          कविता के शिल्प में तुकान्त का विशेष महत्व है, इसलिए काव्य-साधना के लिए तुकान्त-विधान समझना आवश्यक है।

          तुकांत की कोटियाँ-

          (1) वर्जनीय तुकांत

          (2) पचनीय तुकांत

          (3) अनुकरणीय तुकांत

          (4) ललित तुकांत

          तुकांत का महत्व-

          (1) तुकांत से काव्यानन्द बढ़ जाता है।

          (2)तुकांत के कारण रचना विस्मृत नहीं होती है। कोई पंक्ति विस्मृत हो जाये तो तुकांत के आधार पर याद आ जाती है।

          (3) छंदमुक्त रचनाएँ भी तुकांत होने पर अधिक प्रभावशाली हो जाती हैं।

          (4) तुकांत की खोज करते-करते रचनाकार के मन में नये-नये भाव, उपमान, प्रतीक, अलंकार आदि कौंधने लगते हैं जो पहले से मन में होते ही नहीं है।

          (5) तुकांत से रचना की रोचकता, प्रभविष्णुता और सम्मोहकता बढ़ जाती है।

          सामान्यतः मात्रिक छंदों में दो, मुक्तक में तीन, सवैया-घनाक्षरी जैसे वर्णिक छंदों में चार, गीतिका या ग़ज़ल में न्यूनतम छः, समान्तक शब्दों की आवश्यकता होती है। गीत में अंतरों की संख्या से 1 अधिक समानतक शब्दों की न्यूनतम आवश्यकता होती है, अंतरे के भीतरी तुकांत इसके अतिरिक्त होते हैं।

          किसी तुकांत रचना को रचने से पहले प्रारम्भ में ही समान्तक शब्दों की उपलब्धता पर विचार कर लेना चाहिए। पर्याप्त समान्तक शब्द उपलब्ध हों तभी उस समान्त पर रचना रचनी चाहिए।

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