छत्तीसगढ़ के प्रमुख स्थानीय राजवंश के बारे बताये ।

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      pscfighter
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        छत्तीसगढ़ के प्रमुख स्थानीय राजवंश निम्न है –

        राजर्वंषितुल्यकुल वंश –
        इनका शासन काल 5वी से 6वी सदी में था |
        सुर, दायित प्रथम, विभिषण, भीमसेन प्रथम, दायितवर्मन द्वितीय, भीमसेन द्वितीय प्रमुख शासक थे |

        नलवंश –
        इनका शासन काल 5वी से 12वी सदी तक रहा |
        नल नामक राजा ने इस वंश का प्राम्भ किया था |
        प्रमुख शासको में से विलासतुंग ने राजिम लोचन मंदिर का निर्माण कराया | विलासतुंग पांडुवंशीय शासक महाशिवगुप्त बालार्जुन का समकालीन था |
        भवदत्त वर्मा ने साम्राज्य का विस्तार किया था |
        स्कन्द वर्मन को इस वंश का शक्तिशाली शासक बताया गया है |

        शरभपुरिय वंश –
        छठी शताब्दी में इनका शासनकाल था |
        शरभ ने इस वंश की स्थापना की थी |
        इस वंश के प्रमुख शासक प्रसन्न्मात्र, महाजयराज, मनमात्र, सुदेवराज, तथा महाप्रवरराज है |
        प्रसन्नमात्र ने सोने तथा चांदी के सिक्के चलाये जिसमे गरुड़ शंख तथा चक्र अंकित था |

        पांडुवंश –
        इस वंश का प्रथम राजा उद्द्यन था | इसके अलावा प्रमुख शासक तीवरदेव, हर्षगुप्त, महाशिवगुप्त बालार्जुन, थे |
        तीवरदेव ने कोसलाधिपति की उपाधि धारण की थी |
        महाशिवगुप्त बालार्जुन ने सर्वाधिक समय तक शासन किया था |
        महाशिवगुप्त बालार्जुन के ही शासनकाल में उसकी माता रानी वासटा ने उनके पिता हर्षगुप्त की स्मृति में सिरपुर में लक्ष्मण मंदिर का निर्माण कराया था |
        पांडुवंश के अधिकांश शासक “वैष्णव धर्म” के अनुयायी थे परन्तु महाशिवगुप्त “शैव मत” को मानने वाले थे |
        महाशिवगुप्त बालार्जुन के शासनकाल में ही चीनी यात्री “व्हेन सांग” छत्तीसगढ़ आये थे जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक सी-यू-की में किया है तथा छत्तीसगढ़ को किआ-स-लो के नाम से वर्णित किया है |

        सोमवंश –
        शिवगुप्त ने इस वंश की स्थापना की थी |
        इस वंश के शासक त्रिलिंगाधिपति की उपाधि धारण करते थे |

        फनिनागवंश –
        इनका शासन छत्तीसगढ़ के कवर्धा क्षेत्र में था |
        इस वंश के शासक राजा रामचंद्र का विवाह कलचुरी राजकुमारी अम्बिका देवी से हुआ था |
        इस वंश के प्रमुख शासक गोपाल देव ने भोरमदेव मंदिर का निर्माण कराया था |

        छिंदक नागवंश –
        इस वंश के शासको ने 10वीं से लेकर 13वीं सदी तक शासन किया था |
        इस वंश के प्रमुख शासक सोमेश्वरदेव, कन्हरदेव, जयसिंह देव, नरसिंह देव, कन्हर देव द्वितीय, हरिश्चंद्र देव आदि थे |
        बारसूर के शिवमंदिर ,मामा-भांजा मंदिर, बत्तीसामंदिर, चंद्रादित्येश्वर मंदिर का निर्माण इस वंश के शासको ने कराया था |

        कलचुरी वंश (रतनपुर शाखा )-
        शंकरगण ने छत्तीसगढ़ के कलचुरी वंश की स्थापना की थी | प्रारम्भिक राजधानी तुम्माण में स्थापित की थी |
        इस वंश के प्रमुख शासक है – कलिंगराज, कमलराज, रत्नदेव प्रथम, पृथ्वी देव प्रथम, जाजल्यदेव प्रथम , पृथ्वीदेव द्वितीय , रत्नदेव तृतीय, बाहरेन्द्र, कल्याणसाय, तखतसिंह व रघुनाथ सिंह है |
        रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर नगर को बसाया |
        पृथ्वीदेव प्रथम ने सकलकोसलाधिपति की उपाधि धारण की थी |
        जाजल्यदेव ने पाली के शिवमंदिर का जीर्णोधार कराया था |
        रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री ने लखनेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था |

        कलचुरी वंश (रायपुर शाखा) –
        14वीं सदी में कलचुरी वंश (रायपुर शाखा) की स्थापना हुई थी |
        केशवदेव ने इसकी स्थापना की थी |
        इस वंश के प्रमुख शासक रामचंद्र, ब्रम्हदेव राय, अमरसिंह है |
        रायपुर शहर की स्थापना रामचंद्र ने की थी |
        ब्रमदेव राय के नाम पर रायपुर शहर का नामकरण किया गया था |
        ब्रमदेव राय के शासनकाल में एक मोची द्वारा खल्लारी के नारायण मंदिर का निर्माण किया गया था |

        काकतीय वंश –
        अन्नमदेव ने इस वंश की स्थापना की थी, इन्होने दंतेवाडा के प्रसिद्द दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण कराया था |

        मराठा शासन –
        छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वतंत्र मराठा शासक बिम्बाजी को माना जाता है |
        प्रमुख शासक व्यंकोजी भोसला, महीपत राव, विट्ठल दिनकर, भवानी कालू, केशव गोविन्द, यादवराव दिनकर थे |

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