छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में मगध महाजनपद की राजधानी राजगृह थी।
यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था। राज्य में तत्कालीन शक्तिशाली राज्य कौशल, वत्स व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया।
यह महाजनपद बिहार प्रांत के पटना, गया और शाहाबाद के क्षेत्रों में फैला हुआ था। मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विंध्य पर्वत तक, पूर्व में चंपा और पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थी।
बुद्ध के समय मगध एक शक्तिशाली व संगठित राजतंत्र था।
मगध प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान, पतन एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केन्द्र बिन्दु रहा है। मगध बुद्ध के समकालीन एक शक्तिकाली व संगठित राजतन्त्र था। कालान्तर में मगध का उत्तरोत्तर विकास होता गया और मगध का इतिहास भारतवर्ष का इतिहास बन गया।
मगध महाजनपद का उत्कर्ष एक साम्राज्य के रूप में हुआ। इसे भारत का प्रथम साम्राज्य होने का गौरव प्राप्त है। हर्यकवंश के शासक बिंबिसार ने गिरिब्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बनाकर मगध साम्राज्य की स्थापना की। बिंबिसार हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। बिंबिसार के शासनकाल में मगध ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। वह हर्यक कुल का तथा बुद्ध का समकालीन था। उसके द्वारा विजय और विस्तार की शुरू की गई नीति अशोक की कलिंग विजय के साथ समाप्त हुई। बिंबिसार ने अंग देश पर अधिकार कर लिया और इसका शासन अपने पुत्र अजातशत्रु को सौंप दिया। बिंबिसार ने अपने वैवाहिक संबंधों से भी अपनी स्थिति को मजबूत किया, इसने तीन विवाह किए। उसकी प्रथम पत्नी कोसलराज की पुत्री और प्रसेनजित् की बहन थी, उसके साथ दहेज में प्राप्त काशी ग्राम से उसे एक लाख की आय होती थी। यह आय (राजस्व) सिक्कों के चलन से वसूल किया जाता था, इस विवाह से उसकी कोसल के साथ शत्रुता समाप्त हो गई तथा इससे यह संभव हो गया कि वह दूसरे राज्यों से निपट सके। उसकी दूसरी पत्नी वैशाली की लिच्छवि राजकुमारी चेल्लणा थी, जिसने अजातशत्र को जन्म दिया और तीसरी रानी पंजाब के मद्रकुल के प्रधान की पत्री थी। विभिन्न राजकलों से वैवाहिक संबंधों के कारण बिंबिसार को बड़ी राजनीतिक प्रतिष्ठा मिली। इस प्रकार मगध राज्य को पश्चिम और उत्तर की ओर फैलाने का मार्ग प्रशस्त हो गया।