नवीं सदी में उदित चोल साम्राज्य ने दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप के एक बहुत बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
चोलों ने एक शक्तिशाली नौसेना का विकास किया जिसके बल पर उन्होंने हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के समुद्री व्यापार का मार्ग प्रशस्त किया और श्रीलंका तथा मालदीव को जीत लिया।
उनको प्रभाव दक्षिण-पूर्व एशिया के दूर देशों तक भी पहुंचा। चोल साम्राज्य को मध्यकालीन दक्षिण भारतीय इतिहास की चरम परिणति कहा जा सकता है।
चोल साम्राज्य का उदय
9वीं ई० के समापन के आसपास चोल राजा ने पल्लव राजा अपराजित वर्मन को परास्त कर उसका साम्राज्य हथिया लिया।
चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की जो आरंभ में पल्लवों का सामंत था। 850 ई में उसने तंजौर पर कब्जा कर लिया।
तंजौर को जीतने के उपलक्ष्य में विजयालय ने ‘नरकेसरी’ कर उपाधि धारण की थी।
इस प्रकार अब तक पूरा दक्षिण तमिल देश (टोंडइमंडलम) उनके अधिकार में आ चुका था।
विजयालय की वंश परम्परा में लगभग 23 राजा हुए, जिन्होने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया।