घोटुल पाटा मृत्यु गीत है
आदिवासी क्षेत्रों में मृत्यु गीत गाने की परम्परा है. मृत्यु के अवसर पर मुरिया आदिवासियों में ‘घोटुल पाटा’ के रूप में इसकी अभिव्यक्ति होती है.
लोक जीवन के विस्तार में जाने से ज्ञात होता है कि लोक विश्वासों के आधार के रूप में ऐसे बहुत से लोक चरित्र नायक है, जिन्होंने अपने असाधारण व्यक्तित्व और कार्य के द्वारा लोक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान बनाया.
ऐसा प्रतीत होता है कि एक लम्बे समय में लोगों के किसी ऐतिहासिक नायक में अपनी श्रद्धा और विश्वास के अनुरूप अनेक काल्पनिक और लोक स्वीकृति आदर्शों और विचारों को एकमेक कर दिया, इतिहास और कल्पना के संयोग से अद्वितीय आख्यान तैयार हुए.
इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि यह प्रक्रिया आदिवासी समूहों में भी सक्रिय हुई.
बस्तर के मुरिया आदिवासियों में आख्यानपरक गीति काव्य के रूप में ‘घोटुल पाटा’ कला रूप पाया जाता है. इसे बुजुर्ग लोग गाते हैं.
मुख्यतः राजा ‘जोलोंग साय‘ की कथा के साथ प्रकृति के अनेक जटिल रहस्यों के बारे में भी समाधान प्राप्त होते हैं. यह नहानी के अवसर पर गायी जाने वाली कथा है.
कथा के साथ चलने वाले अवान्तर प्रकृति प्रश्नों को अनुषंग के रूप में ही लेना चाहिये, इसमें जीवन के गहरे अनुभव, जिज्ञासा और उनके समाधान के रूप में उपलब्ध होते हैं, मुख्य कथा के साथ इनका गहरा सम्बन्ध है.
इनकी ‘प्रकृति किसी चरित्र नायक के साथ आख्यान में आने वाले ‘क्षेपक’ जैसी नहीं है, बल्कि समानान्तर सर्जन जैसी है. इसे जीवन चक्र के समाहार के रूप में लेना उचित प्रतीत होता है.