गहन निर्वाह कृषि -यह कृषि मुख्यतः एशिया के धनी जनसंख्या वाले देशों में की जाती है। इसमें चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश तथा जापान सम्मिलित हैं।
यह दो प्रकार की होती है :
(1) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि -इसमें चावल सबसे महत्त्वपूर्ण फसल होती है। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
1. उच्च जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है।
2. भूमि का गहन उपयोग किया जाता है।
3. कृषि का समस्त कार्य कृषक तथा उसके परिवार के सदस्य करते हैं।
4. मशीनों का प्रयोग बहुत कम होता है।
5. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद तथा हरी खाद का उपयोग किया जाता है।
6. प्रति इकाई उत्पादन अधिक परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।
(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि -इस कृषि में चावल मुख्य फसल नहीं होती है और इसके स्थान पर गेहूँ, सोयाबीन, जौ तथा सोरघम आदि फसलें बोई जाती हैं।
यह कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ पर चावल की फसल के लिए पर्याप्त वर्षा नहीं होती। उच्चावच तथा मृदा जैसे अन्य कारक भी चावल की कृषि के लिए उपयुक्त नहीं होते।
उत्तरी चीन, उत्तर-पश्चिमी भारत, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में इस प्रकार की कृषि की जाती है।
इस कृषि की अधिकांश विशेषताएँ चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि जैसी ही हैं अन्तर केवल इतना ही है कि इस कृषि के क्षेत्रों में वर्षा कम होती है और सफल कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है