खड़ी बोली गद्य का जनक भारतेन्दु हरिश्चंद्र को माना जाता है
भारतेन्दु हरिश्चंद्र को खड़ी बोली का जनक मानने का प्रमुख कारण है कि इन्होंने एक प्रकार से अपने युग में गद्य का स्वरूप स्थिर किया था.
खड़ी बोली गद्य का आरम्भ मुख्यतः अमीर खुसरो से माना जाता है।
खड़ी बोली गद्य की पहली पुस्तक अकबरकालीन कविगंग ने ‘चन्द छन्द बरनन की महिमा’ नाम से लिखी। इसका रचनाकाल लगभग 1570 ई० है।
सम्वत् 1798 (1741 ई०) में रामप्रसाद निरंजनी ने ‘भाषायोगवैशिष्ठ’ नामक ग्रन्थ शुद्ध खड़ी बोली में लिखा। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे ‘परिमार्जित गद्य की पहली पुस्तक’ माना है।
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभी में अंग्रेजी शिक्षादीक्षा के प्रचार और पाश्चात्य साहित्य के फलस्वरूप गद्य का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ।
भारतेन्दु युग’ यानी साहित्याकाश में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का आगमन । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का हिन्दी गद्य साहित्य में विशेष स्थान है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की महान सृजनशील प्रतिभा के प्रभाव से ही लेखों का एक ऐसा मण्डल तैयार हुआ जिसने निबंध, जीवन चरित्र, नाटक, कहानी, यात्रा-वर्णन आदि गद्य का विविध विधाओं में प्रयोग करना प्रारंभी किया।
महादेवी वर्मा के शब्दों में, भारतेन्दु युग हमारे साहित्य का ऐसा वर्ष-काल है जिसमें सभी प्रवृत्तियाँ अंकुरित हो उठी हैं।