क्रोधित होते हुए भी परशुराम जी ने लक्ष्मण का वध
“बालक समझकर” नहीं किया
लक्ष्मण जी हँसकर परशुराम से बोले-हे देव! सुनिए, मेरी समझ के अनुसार तो सभी धनुष एक समान ही होते हैं।
लक्ष्मण श्रीराम की ओर देखकर बोले-इस धनुष के टूटने से क्या लाभ है तथा क्या हानि, यह बात मेरी समझ में नहीं आई है।
श्रीराम ने तो इसे केवल छुआ था, लेकिन यह धनुष तो छूते ही टूट गया।
फिर इसमें श्रीराम का क्या दोष है? मुनिवर! आप तो बिना किसी कारण के क्रोध कर रहे हैं?
लक्ष्मण की व्यंग्य भरी बातों को सुनकर परशुराम का क्रोध और बढ़ गया और वह अपने फरसे की ओर देखकर बोले-
अरे दुष्ट! क्या तूने मेरे स्वभाव के विषय में नहीं सुना?
मैं तुझे बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ।
अरे मूर्ख! क्या तू मुझे केवल मुनि समझता है?
मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति हूँ।
मैं पूरे विश्व में क्षत्रिय कुल के घोर शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हूँ।
मैंने अपनी इन्हीं भुजाओं के बल से पृथ्वी को कई बार राजाओं से रहित करके उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया था।
हे राजकुमार! मेरे इस फरसे को देख, जिससे मैंने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था।