क्रिस्टोफर कोलंबस कौन था

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      क्रिस्टोफर कोलंबस  इटली का एक अन्वेषक तथा समुद्रयात्री था। उसने सन् 1492 में अमेरिका की खोज की।

       कोलंबस ने 550 साल पहले पालदार नौकाओं से हजारों मील की अनजान यात्राएँ की और नई दुनिया की खोज की। आज के इस आधुनिक युग में भी वैसा जोखिम उठाने का माद्दा विरलों में ही होगा।

      इटली के जेनोए में 31 अक्तूबर, 1451 को जनमे क्रिस्टोफर कोलंबस का मन पिता के कढ़ाई-बुनाई के काम में नहीं लगता था। उसे पसंद था-घंटों समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरों को देखना और मछली पकड़कर लौटे नाविकोंमछुआरों से समुद्र-यात्रा के किस्से-कहानियाँ सुनना।

      उसने भी नावों पर धीरे-धीरे दूर समुद्र में जाना शुरू कर दिया। उसने समुद्री नक्शे बनाने और भौगोलिक ज्ञान में भी रुचि ली।

      सन् 1476 में कोलंबस पुर्तगाल आ गया। पुर्तगाल उन दिनों दुनिया का एक बड़ा नौवहन केंद्र था। यहाँ रहकर कोलंबस नौवहन का विशेषज्ञ बन गया।

      उसने नई दुनिया खोजने की ठान ली। उन दिनों दुनिया के बहुत से हिस्से अनजान थे, क्योंकि उन्हें दुनिया के मानचित्र पर जगह नहीं मिली थी।

      सन् 1492 में स्पेन के राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला ने काफी जद्दोजहद के बाद कोलंबस को आर्थिक मदद प्रदान की, जिससे उसने अपनी अनजान यात्रा आरंभ की।

      3 अगस्त, 1492 को नीना, पिंटा और सांता मारिया नामक तीन जहाजों में अपने दल-बल के साथ कोलंबस अटलांटिक महासागर में पश्चिम की ओर रवाना हुआ। जहाजों में कोलंबस के अलावा 90 सहायक थे।

      यात्रा के आरंभ में सभी नाविक उत्साह से लबरेज थे, लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, नाविकों की चिंता बढ़ने लगी, सिवा अथाह जल-राशि और ऊँची-विकराल लहरों के कुछ नजर नहीं आ रहा था। वापस लौटना भी नामुमकिन था।

      आखिर 36 दिन की यात्रा के बाद उन्हें जमीन के दर्शन हुए, लेकिन वह कोलंबस की यात्रा के विपरीत एशियाई जमीन नहीं, कोई और जगह थी। उसने सचमुच एक अनजान दुनिया खोज ली।

      कौन सी दुनिया थी वह? वे बहामास पहुँच गए थे, जो अमेरिकी महाद्वीप के पास एक द्वीपीय देश है। वहाँ के लोगों ने इन यूरोपीय नाविकों का मित्रवत स्वागत किया और व्यापारिक संबंध कायम करते हुए काँच के मोती, कपड़े की गेंदें, तोते और भाले उन्हें दिए।

      कोलंबस ने आगे की यात्रा जारी रखी और क्यूबा और हिस्पानिओला (वर्तमान हैती और डोमिनिकन गणराज्य) में वहाँ के राजनेताओं से भेंट की। उसने हिस्पानिओला में कुछ स्थानीय लोगों की मदद से एक बस्ती भी बसाई और अमेरिका में स्पेनी उपनिवेशवाद की नींव रखी

      यहाँ उसने अपने 39 लोगों को छोड़ दिया और सन् 1493 में वापस स्पेन लौट आया। अपनी दूसरी यात्रा में उसने कैरीबियन महासागर में कुछ और द्वीप खोजे। हिस्पानिओला पहुँचने पर उसे ज्ञात हुआ कि उसकी बस्ती उजाड़ दी गई थी और सारे लोगों को मार दिया गया था।

      उसने उस इलाके में सोने की भी खोज की और दोबारा बस्ती की देखरेख और प्रबंधन के लिए अपने दो भाइयों बार्थोलोयु और डिएगो को वहाँ छोड़ दिया।

      अपनी तीसरी यात्रा में वह दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला पहुँच गया। उसकी चौथी और आखिरी यात्रा सन् 1502 में आरंभ हुई, लेकिन एशिया का छोटा मार्ग खोजने की उसकी हसरत अधूरी ही रह गई।

      तूफान ने उसके जहाज को नष्ट कर दिया। उसकेआखिरी साल बड़े संघर्षपूर्ण रहे और एशियाई खोज की अधूरी आस के साथ ही 20 मई, 1506 को उसने स्पेन में दम तोड़ दिया।

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