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jivtarachandrakant.
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- September 23, 2021 at 8:09 am
लोकसभा अध्यक्ष अपने पद का शपथ नहीं लेता हैलोकसभा अध्यक्ष को अपना पद संभालने के लिए न तो कोई शपथ (Oath) लेनी पड़ती है और न ही कोई प्रतिज्ञा (affirmation) करनी पड़ती है।
संविधान की तीसरी अनुसूची में उनसे संबंधित किसी भी शपथ या प्रतिज्ञान का उल्लेख नहीं है।
वे लोकसभा का सदस्य के तय होने के नाते ही शपथ लेते हैं, अध्यक्ष होने के नाते अलग से कोई शपथ नहीं लेते।
लोकसभा के दो प्रमुख अधिकारी अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष हैं ।
संविधान के अनुच्छेद 93 से 97 तक इनसे संबंधित प्रावधान दिए गए हैं ।
लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) :-यदि भारत की लोकसभा ब्रिटिश कामन्स सभा का भारतीय प्रतिरूप है तो लोकसभा का अध्यक्ष स्पीकर (अध्यक्ष) का भारतीय संस्करण मात्र है।
अत: लोकसभा का अध्यक्ष अपने पद, कार्य, शक्ति, ज्ञान और गरिमा की दृष्टि से ब्रिटिश स्पीकर के समतुल्य ही है।
लोकसभा अपने सदस्यों में से ही एक सदस्य को निर्वाचित करके अध्यक्ष पद पर नियुक्त करती है।
प्रत्येक आम चुनाव के बाद लोकसभा गठित होते ही अध्यक्ष की नियुक्ति हेतु निर्वाचन होता है।
प्रायः जिस राजनीतिक दल का लोकसभा में बहुमत होता है, उसी दल का सदस्य निर्वाचित होकर अध्यक्ष पद पर नियुक्त हो जाता है अध्यक्ष का चयन लोकसभा का बहुमत प्राप्त दल कर लेता है ।
इस प्रकार लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति प्रायः सर्वसम्मति से ही हो जाती है।
वह लोकसभा भंग हो जाने की स्थिति में भी नयी लोकसभा की प्रथम बैठक की तिथि तक अपने पद पर बना रहता है।
अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सदन की अध्यक्षता करता है।
दोनों की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही के संचालन हेतु पहले से वरिष्ठता के अनुसार 6 सदस्यों की सूची तैयार कर ली जाती है। जिसमें से वरिष्ठता के अनुसार कोई सदस्य सदन की अध्यक्षता करता है।
लोकसभा अध्यक्ष सदन के विश्वास-पर्यन्त ही अपने पद पर बना रह सकता है परन्तु अविश्वास की स्थिति में एक विशेष प्रक्रिया द्वारा लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से उसको पद से हटाया जा सकता है या वह स्वयं त्यागपत्र भी दे सकता है।
लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य – भारतीय संविधान द्वारा लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य निर्धारित नहीं किये गये हैं परन्तु संसदीय कार्यवाही की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन सम्बन्धी नियमों के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य निम्नलिखित हैं
- * लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता और कार्यवाही का संचालन करना।
- * लोकसभा के नेता (प्रधानमन्त्री)के परामर्श से सदन की कार्यवाही का कार्यक्रम निश्चित करना।
- * प्रधानमन्त्री के परामर्श से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वाद-विवाद के लिए समय निश्चित करना।
- * सदस्यों से प्रश्न पूछने की अनुमति प्रदान करना।
- * सदस्यों को भाषण की अनुमति देना तथा उनका क्रम व समय निश्चित करना। कार्य स्थगन प्रस्तावों को प्रस्तुत करने की अनुमति देना।
- * किसी विचाराधीन विधेयक पर वाद-विवाद रोकने सम्बन्धी प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुमति देना।
- * प्रवर समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करना।
- * संसद और राष्ट्रपति के मध्य पत्र-व्यवहार के माध्यम के रूप में कार्य करना।
- * विधेयकों तथा बजट पर भाषणों के लिए समय-सीमा निर्धारित करना।
- * विधेयकों तथा प्रस्तावों पर सदन में मतदान कराना एवं परिणाम की घोषणा करना। प्रस्तावों के पक्ष और विपक्ष में समान मतदान होने की स्थिति में अपना निर्णायक मत देना।
- * अध्यक्ष ही यह निश्चित करता है कि कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं।
- * सदन की विभिन्न समितियों की बैठकों की अध्यक्षता करना।
- * सदन में अनुशासन एवं शान्ति बनाये रखना। अनुशासनहीनता या शान्ति भंग होने की स्थिति में सदन की कार्यवाही को स्थगित कर देना।
- * संसद द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर करके राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजना।
- * लोकसभा सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करना।
- * लोकसभा सचिवालय पर नियन्त्रण रखना। किसी विधेयक को समाचार-पत्र में प्रकाशित करने के लिए अनुमति प्रदान करना।
- * लोकसभा की प्रक्रिया से सम्बन्धित विवादस्पद प्रश्नों की व्याख्या करके निर्णय देना।
इस प्रकार संसदीय परम्पराओं के विकास में लोकसभा अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
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Tagged: राजव्यस्था, संविधान, स्पीकर
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