कुपोषण किसे कहते हैं

  • Post
Viewing 0 reply threads
  • उत्तर
      shubham
      Participant
        कुपोषण की परिभाषा:-

        जब आहारीय तत्त्व गुण तथा मात्रा में शरीर की आवश्यकता के लिए उपयुक्त नहीं होते या इनमें से किसी एक भी तत्त्व की कमी होती है तो यही स्थिति अपर्याप्त पोषण अथवा कुपोषण (Under Nutrition) कहते है ।

        शारीरिक विकास एवं उसकी वृद्धि उसके दोषपूर्ण भोजन के ढंग के कारण ही होता है ।

        यदि कोई व्यक्ति दोषपूर्ण भोजन करने लगे या भोजन में नगण्य स्थान हो तो ये ही मानव जीवन के लिए अभिशाप बन जाते हैं।

        शरीर अविकसित रहकर अनेक रोगों से आक्रान्त हो जाता है ।

        शरीर का यही अविकसित रूप कुपोषण के नाम से जाना जाता है ।

        कुपोषण के कारण:-
        1. भोजन से सम्बन्धित कारण
        2. सामान्य कारण

        1. भोजन सम्बन्धी कारण—
        भोजन सम्बन्धी निम्नलिखित कारणों से कुपोषण होता है
        (i) अनुपयुक्त भोजन (Unsuitable Food)—जब व्यक्ति की आयु, लिंग एवं श्रम के अनुसार उचित मात्रा में भोजन द्वारा पोषक तत्त्वों की प्राप्ति न हो तो भोजन अपूर्ण एवं दोषपूर्ण कहलाता है, जो कुपोषण में सहायक होता है।

        (ii) अपर्याप्त भोजन (Insufficient Food)—कुछ परिवार अज्ञानतावश या निर्धनतावश पौष्टिक भोजन नहीं
        कर पाते। उनका सर्वांगीण विकास रुक जाता है।

        (iii) गरिष्ठ भोजन (Food not Easily Digested)—ऐसा भोजन, जिसे सरलता से पचाया न जा सके, गरिष्ठ भोजन कहलाता है। अधिक तला हुआ, भुना हुआ या अधिक वसा मिश्रित भोजन कुपोषण में सहायक होता है।

        (iv) असामयिक भोजन (Taking Food not at Proper Intervals) बार-बार भोजन करने से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, अतः निश्चित समय पर भोजन करना चाहिए।

        2. सामान्य कारण-
        भोजन सम्बन्धी कारणों के अतिरिक्त कुछ ऐसे कारण हैं जिनके कारण कुपोषण होने लगता है जैसे-

        (i) कार्य की अधिकता के कारण भोजन में पोषक तत्त्वों की मात्रा कम रह जाने पर कुपोषण हो जाता है।

        (ii) सोने के लिए पर्याप्त स्थान का अभाव, स्वच्छ वायु का अभाव, समय का अभाव, घर का दूषित वातावरण आदि कुपोषण में सहायक होते हैं।

        (iii) मनुष्य जब अपने घर में या कार्यस्थल पर अपने को उपेक्षित महसूस करने लगता है तो उसके पोषण में बाधा उत्पन्न होने लगती है।

        कुपोषण के लक्षण:-

        1. चेहरे पर पीलापन दिखायी देने लगता है।

        2. स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।

        3. शारीरिक भार कम होने लगता है।

        4. आँखें व पलकें भारी व थकी सी लगने लगती हैं।

        5. बच्चों में खाँसी, जुकाम शीघ्र होने लगता है।

        6. शारीरिक विकास रुक जाता है।

        7. पाचन क्रिया में विकार उत्पन्न हो जाता है।

        8. नींद गहरी नहीं आती है।

        9. बच्चों के दाँत देर से निकलते हैं।

        10.त्वचा पर झुर्रियाँ या थकावट दिखायी देती है।

        कुपोषण से होने वाले रोग:-

        1. प्रोटीन एवं कैलोरी की कमी के कारण कुपोषण रोग-

        i) क्वाशियोरकर—यह एक प्रकार का प्रोटीन अभावजनित रोग है। इसमें शरीर की वृद्धि रुक जाती है। शरीर में सूजन तथा माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं। बच्चा प्रायः सुस्त तथा चिड़चिड़ा रहता है। हाथ-पैर दुर्बल तथा पेट निकल आता है। रोगी बच्चे के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए प्रोटीन युक्त भोजन का नियमित प्रयोग
        वांछित है।

        (ii) मेरेस्मस- यह भी प्रोटीन एवं कैलोरी की कमी के कारण होता है। शरीर दुर्बल तथा पतला हो जाता है। त्वचा झुर्शीदार हो जाती है। दस्त अधिक आते हैं। यह रोग मुख्यत: माता के दूध पर कम दिनों तक पोषण के परिणामस्वरूप होता है |

        2. खनिज लवणों के कारण कुपोषण रोग-
        (i) रक्तान्यता– खनिज लवणों की कमी भी शरीर के लिए हानिकारक है। लोहे की कमी मात्र से रक्त की कमी होती है। स्त्रियों में अधिक रक्तस्राव एवं दीर्घ काल तक बच्चे को दूध पिलाना भी इसके कारण हैं। शरीर में थकावट, सिर दर्द, भूख का कम लगना इत्यादि इसके लक्षण हैं। आयोडी की कमी के कारण होता हैया॑यकिआकृति बिगड़ाती है जिससे गले सूजन आ जाती है। इसका उपचार दैनिक भोजन में आयोडीन युक्त भोजन है।

        (iii) रतौंधी- विटामिन A की कमी के कारण होता है। आँखों में बनने वाले टोडाप्सिन से आँख का बन्द हो जाना, जिसके कारण मनुष्य अँधेरे में नहीं देख पाता है। इसके उपचार हेतु दैनिक आहार में विटामिन A युक्त भोजन आवश्यक है।

        (iv) रिकेट्स- विटामिन D की कमी के कारण होता है।

        (v) बेरी-बेरी- विटामिन B की कमी के कारण होता है।
        (vi) स्कर्वी- विटामिन C की कमी के कारण होता है।

        कुपोषण से पीड़ित बच्चों के मस्तिष्क का आकार सामान्य आकार से छोटा होता है, जिससे बच्चे जीवन भर मानसिक शिथिलता के शिकार बने रहते हैं। इसके अलावा बच्चों की शारीरिक वृद्धि विकृत हो जाती है। बच्चे प्रायः चिड़चिड़े एवं कमजोर हो जाते हैं। उनकी शारीरिक शिथिलता बढ़ जाती है।

        कुपोषण का उपचार:-

        जैसे ही शरीर में उपर्युक्त लक्षण दिखायी देने लगें तो शीघ्र ही कुपोषण का निम्नलिखित उपचार कराना चाहिए

        1. डॉक्टरी जाँच द्वारा बच्चे का पूर्ण निरीक्षण तथा उपचार कराना चाहिए।

        2. प्रतिमाह बालक का वजन लेना चाहिए।

        3. भोजन पर्याप्त तथा निर्धारित समय पर ही करना चाहिए।

        4. भोजन के पश्चात् टहलने की सलाह देनी चाहिए। विश्राम का भी उचित प्रबन्ध करना चाहिए।

        5. भोज्य पदार्थों में अधिक वसा, तेल मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

        6. निर्धन परिवारों की गृहणियों को इस प्रकार के ज्ञान की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे वे उपलब्ध वस्तुओं से ही अपने परिवार के सदस्यों की आवश्यकतानुसार पोषक तत्त्वों की पूर्ति कर सकें। प्रायः देखा जाता है कि सामान्य से निम्न स्तर पर जीवन जीने वाले परिवारों के बच्चे अधिकांशत: कुपोषण के शिकार होते हैं। स्वास्थ्य विभाग को भी ऐसी बस्तियों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए तभी कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सकता है।

    Viewing 0 reply threads
    • You must be logged in to reply to this topic.