महाराजा
सवाई जयसिंह द्वितीय के नाम पर नगर का नाम जयपुर पड़ा ।
जयपुर नगर की स्थापना सवाई जयसिंह को स्थापत्य कला से विशेष लगाव था।
वह अपनी राजधानी को मुगल शासकों की भांति भव्य, सुंदर एवं सुविधाजनक बनाना चाहता था।
प्रारम्भ में उसने आमेर में कुछ भवन बनवाये परन्तु जब उसने देखा कि आमेर में विस्तार की अधिक सम्भावना नहीं है तो उसने अपनी राजधानी के लिये एक नया नगर स्थापित करने का निश्चय किया।
इस नगर को बसाने की योजना अपने काल से बहुत आगे की थी क्योंकि इस काल में मदमत्त मरहठे उत्तर भारत को रौंदना आरम्भ कर चुके थे तथा अफगानिस्तान से आने वाले आक्रांताओं के आक्रमण अभी रुके नहीं थे।
ऐसी स्थिति में किसी भी राजा के लिये अपनी राजधानीको दुर्ग की परिधि के भीतर ही सुरक्षित रखना सुविधा जनक था। फिर भी जयसिंह ने ऐसे नगर के निर्माण का निर्णय लिया जो मोटी प्राचीर तथा रक्षक सैनिकों से घिरा हुआ हो।
यद्यपि सवाई जयसिंह ने 18 नवम्बर 1727 को अपने नाम से ‘जयपुर’ नगर का शिलान्यास किया तथापि 1725 ई. में जयपुर नगर की स्थापना के लिये प्रारम्भिक कार्य आरम्भ हो गये थे।
जयपुर की नगर योजना तैयार करने के लिए एक बंगाली ब्राहाण विद्याधर भट्टाचार्य को आमंत्रित किया गया जो ज्योतिष, गणित तथा वास्तुशास्त्र का ज्ञाता था। जयपुर का मानचित्र तैयार करने के लिये देश-विदेश से अनेक नगरों के मानचित्र मँगवाए गये।
युग निर्माता सवाई जयसिंह स्थापत्य अत्यंत उत्तम कोटि का है। दिल्ली में सिर्फ एक चांदनी चौक है, लेकिन जयपुर में उससे मिलते-जुलते बहुत से चौक है। भवनों के लिये पत्थर यहाँ की पहाड़ियों से उपलब्ब हो जाते हैं।
नगर की मुख्य सड़कों पर समृद्ध लोगों के भवन हैं जिनके भीतर आराइश की दीवारें और बाहर गुलाबी रंग का प्रास्टर है। इन सड़कों पर कोई खण्डहर, झोंपड़े अथवा कच्चे मकान नहीं हैं। जबकि भीतरी गलियों में साधारण नागरिकों के आवास है। कहीं भी कूड़े-करकट के ढेर नहीं हैं।
यह नगर इतना भव्य, इतना सुविधाजनक तथा इतना वैज्ञानिक पद्धति से बना हुआ था कि स्वतंत्रता प्रापि के बाद इस नगर को राजस्थान के मध्य में स्थित न होते हुए भी राजस्थान की राजधानी बनाया गया।
आज भी जयपुर भारत का एक मात्र ऐसा नगर है जो पूर्णतः भारतीय पद्धति पर आधारित होते हुए भी आधुनिकता में सबसे आगे है। कवि बखतराम साह ने अपने ग्रंथ बुद्धि विलास में जयपुर नगर की स्थापना का विस्तृत वर्णन किया है।
1876 में इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है।