कवि ने सोने पर सुहागा किसे बताया है

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      dharya12
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        प्रस्तुत कविता जिनके रचयिता रैदास के नाम से विख्यात संत रविदास हैं।

        कवि ने अपने आराध्य का स्मरण करते हुए विभिन्न वस्तुओं के माध्यम से अपनी तुलना उनसे की है।

        कवि ने अपने आप को सोने पर सुहागा बताया है |

        इनकी दृष्टि में उनका निर्गुण व निराकार ब्रह्म हर हाल में, हर काल में सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वगुण संपन्न है।

        परमात्मा की एकनिष्ठ भक्ति करके कवि और ईश्वर एक होकर अभिन्न हो गए हैं।

        प्रभु चंदन हैं तो कवि पानी, प्रभु सघन वन अर्थात् जंगल हैं तो कवि उसमें विचरण करने वाला मोर।

        ‘वह’ चाँद तो कवि चकोर पक्षी. ‘वह’ दीपक हैं तो कवि स्वयं बाती, ‘वह’ शुद्ध मोती तो कवि धागा, ‘वह’ सोना है तो कवि सुहागा।

        इस प्रकार ईश्वर की एकनिष्ठ भक्ति से उनका एकाकार हो गया।

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