कर योग्य छमता की अवधारणय पर व्याख्या कीजिए

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      कर योग्य आय की अवधारणा :-  सकल कुल आय में से धारा 80C से 800 तक की कटौतियाँ घटाने के बाद, जो शेष बचता है, उसे कर योग्य आय (Taxable Income) कहतें हैं। इसे कुल आय भी कहतें है। इसी करयोग्य आय पर, निर्धारित दरों से आयकर की गणना की जाती है।

      व्यक्ति करदाताओं का आय-कर दायित्व निर्धारित करने के लिए उनकी ‘कर-योग्य आय‘ की गणना आवश्यक है।

      (i) कुल आय की गणना करने से पूर्व सकल कुल आय की गणना की जाती है जिसके लिये सर्वप्रथम आय के सभी पाँच शीर्षकों की आयों की गणना करके जोड़ दिया जाता है।

      (ii) तदुपरान्त इस आय में सम्मिलित की जाने वाली दूसरे व्यक्तियों की आय एवं अन्य मानी गई आयें जोड़ दी जाती हैं।

      (iii) इसके पश्चात् यदि किसी शीर्षक के अन्तर्गत हानि हो, या हानि को आगे लाया गया हो या अशोधित ह्रास, आदि हो तो नियमानुसार इन्हें घटा दिया जायेगा।

      इस प्रकार विभिन्न समायोजनाओं को करने के बाद प्राप्त राशि ‘सकल कुल आय’ होगी।

      (iv) सकल कुल आय में से धारा 80C से 800 तक की स्वीकृत कटौतियाँ नियमानुसार घटायी जाती है। शेष बची राशि ‘कर-योग्य आय’ अथवा ‘कुल आय’ अथवा ‘शुद्ध कर-योग्य आय’।
      होती है।

      (v) कल आय की राशि कोर 10 के सन्निकट पूणांकित (Round-off) किया जाता है।

       

       

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