कन्नड़ भाषा में पत्र को ‘कागद’ तथा ‘ओले’ भी कहते हैं
‘पत्र’ शब्द के लिए विभिन्न भाषाओं-बोलियों में प्रयुक्त होने वाले शब्द :-
सूचनाओं के मौखिक संप्रेषण के बाद जब लिपि, अक्षर, कागज, कलम का आविष्कार हुआ, तब ये सूचनाएँ लिखित रूप में सरकारी-गैर सरकारी स्तरों पर विश्वसनीय माध्यम से यहाँ से वहाँ भेजी जाने लगीं।
कागज या पत्ते पर लिखे इन संदेशों-सूचनाओं के लिए पत्र शब्द का इस्तेमाल किया गया, पर यहाँ एक सुखद और प्रीतिकर आश्चर्य होता है कि देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अधिकांश भाषाओं-बोलियों में ‘पत्र’ को ‘पत्र’, ‘चिट्ठी’ या सरकारी स्तर पर ‘राजाज्ञा’ कहते हैं।
‘पत्र’ शब्द के लिए भारत की विभिन्न भाषाओं, बोलियों में अधोलिखित शब्दों का प्रयोग किया जाता है, यथा-संस्कृत, मराठी और कन्नड़ में इसे ‘पत्र’ ही कहते हैं। कन्नड़ में इसे ‘पत्र’ के अलावा ‘कागद’ तथा ‘ओले’ भी कहते हैं ।
बँगला भाषी लोग इसके लिए पत्र’ शब्द का इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन उनके यहाँ अनेक शब्दों का उच्चारण विवृत्ताकार-गोलाकार होता है, जैसे खजूर यहाँ ‘खेजूर’, जानवर ‘जानोआर’, वकील ‘ओकील’, के रूप में उच्चारित किया जाता है, अतः ‘पत्र’ शब्द को ये लोग विवृत्ताकार ‘पोत्र’ के रूप में बोलते हैं।
पूर्वोत्तर, खासकर असम के कई हिस्सों में इसे ‘चिट्ठी’ कहते हैं,तो कई ठिकानों में ‘पोत्र’ तो कई जगहों में ‘पोत्र’ कहते हैं ।’पत्र’ के लिए ‘चिट्ठी’ शब्द का प्रयोग पंजाबी, उड़िया, बुंदेली या बुंदेलखंडी तथा दक्षिण भारत की मलयालम और सिंधी में भी होता है।
उर्दू में पत्र को ‘खत’ कहते हैं, लेकिन यह उर्दू का ‘खत’ शब्द परसियन और अरबी में अपना अर्थ बदल देता है। परसियन में ‘खत’ को ‘नामा’ कहते हैं तो अरबी में इसके लिए ‘रुक्का ‘ (Rukka) शब्द व्यवहृत करते हैं।
चूँकि असमिया, बँगला और उड़िया भाषाएँ कई संदर्भो में एक लाद से पैदा हुई सगी बहनें मानी जाती हैं, अत: बँगला के उच्चारण की लौछार-लवलेस असमिया के ‘पोत्र’ पर भी साफ-साफ झाँक जाती है। गुजराती में पत्र के लिए अमूमन स्थूल रूप से ‘टपाल’ शब्द का उच्चारण करते हैं ।
दक्षिण की प्रमुख भाषा तमिल में ‘पत्र’ को ‘कटिदम्’ या ‘कडिद’ कहते हैं, तो वहीं बगल में दक्षिण की एक अन्य सुप्रसिद्ध भाषा ‘तेलुगु’ में पत्र को ‘लेख’, ‘उत्तरमु’ या ‘उत्तरम्’ और ‘जाब’ कहते हैं।
अत: ‘पत्र’ शब्द के लिए भारत में विभिन्न भाषाओं, एवम बोलियों का प्रयोग किया जाता है,