कत्थक डांस मुख्य रूप से “
उत्तर प्रदेश” का माना जाता है|
कत्थक उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य है|
भरतनाट्यम की भाँति कत्थक नृत्य का स्रोत भी भरतमुनि का नाट्यशास्त्र है|
इसकी परम्परा मुख्य रूप से लखनऊ व जयपुर में आज भी अक्षुण्ण है |
कत्थक में नृत, नृत्य व नाट्य तीनों अंगों का प्रस्तुतीकरण सन्तुलित रूप से किया जाता है|
‘नृत’ में केवल ताल लय के आधार पर अंग संचालन किया जाता है |
‘नृत्य’ में अंग का मुखाभिनय द्वारा कथानक का प्रस्तुतिकरण किया जाता है |
कत्थक नृत्य के विविध चरण हैं:- (1) वन्दना (2) आमद (3) थाट (4) तोड़ा (5) चक्करदार तोड़ा (6) परण (7) कवित्त (8) गत निकास (9) गत भाव (10) पद संचालन
कत्थक नृत्य की मुख्य विशेषता ‘पदचाप’ है, जिसे ‘तटकार’ कहा जाता है |
कथक नृत्य के घराने
कथक नृत्य को संगीत के कई घरानों का समर्थन मिला, जिनका विवरण निम्नलिखित है :-
लखनऊ घराना – लखनऊ में कत्थक नृत्य की स्थापना प्रकाश जी व उनके पुत्र ठाकुर प्रसाद ने की थी | वह राजस्थान के निवासी थे तथा यह कत्थक की रासुधारी परम्परा के थे | ठाकुर प्रसाद के तीन पुत्रों-बिन्दादिन महाराज, कालका प्रसाद, भैरों प्रसाद ने अपने पिता व पितामह की परम्परा को बनाए रखा. कालका प्रसाद के तीनों पुत्रों-अच्छन महाराज, लच्छू महाराज व शम्भू महाराज ने भी कत्थक की पारिवारिक शैली को बनाए रखा| इस घराने के सुखदेव महाराज व सितारादेवी भी कत्थक के श्रेष्ठ कलाकारों में हैं |
जयपुर घराना – कत्थक के जयपुर घराने की स्थापना मास्टर गिरधर ने की थी| उनके पुत्र हरिप्रसाद व हनुमान प्रसाद ने कत्थक नृत्य को ऊँचाइयों तक पहुँचाया| जयलाल, नारायण प्रसाद, सुन्दर प्रसाद, मोहन लाल, चिरंजीलाल आदि ने इस घराने के (कत्थक जयपुर घराना) के प्रमुख कलाकार हुए हैं | गुरु शम्भू महाराज, बिरजू महाराज, गोपीकृष्ण आदि भी कत्थक नृत्य के महान् कलाकार हुए हैं |
रायगढ़ घराना – कथक नृत्य का यह सबसे नया घराना है। यह | लखनऊ एवं जयपुर घराने की मिश्रित शैली है। इसे लोकप्रिय बनाने में | पंडित कार्तिकराम एवं पोडत रामलाल का प्रमुख योगदान है।
बनारस घराना – इस घराने की प्रमुख नृत्यांगना सितारा देवी एवं उनकी पुत्री जयंतीमाला है।