केशवदास-केशव ‘कठिन काव्य के प्रेत’ हैं-यह उक्ति पूर्व प्रचलित हो चुकी है। केशव अलंकारी कवि हैं। अत: चमत्कार प्रदर्शन के कारण उनके काव्य कला पक्ष अधिक मुखर दिखाई पड़ता है।
हृदय पक्ष का प्रायः अभाव ही लक्षित होता है और न्यूनाधिक है भी तो उस पर अलंकारों का पूर्ण प्रभाव दिखाई पड़ता है। अलंकार प्रियता के कारण ही केशव के काव्य में कृत्रिमता के दर्शन होते हैं।
वशिष्ठमुनि ओझा का कहना है कि ‘आचार्यत्व और पाण्डित्य के फेर में पड़कर केशव ने सरलता का ध्यान नहीं रखा। पिंगल और अलंकार शास्त्र का विशेष ध्यान रखकर छन्द लिखे हैं।
अलंकारों की भरमार से केशव इनके बादशाह तो अवश्य मालूम होते हैं पर इसी कारण इनकी कविता सर्व-धारण के समझ में न आने के कारण वे कठिन काव्य के प्रेत बन गए हैं।
इसके अतिरिक्त केशव को कठिन काव्य का प्रेत कहने के पीछे उनके काव्य में संस्कृत शब्दों की बहुलता, चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति और आचार्यत्व भी है।