औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में, शाह नवाज़ खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों
“आज़ाद हिंद फौज (इंडियन नैशनल आमी) अधिकारियों के रूप में ” याद किये जाते हैं |
आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों में सरदार गुरबख्श सिंह, श्री प्रेम सहगल और शहनवाज पर मुकदमा चलाया गया था।
जिनमें इन्हें फाँसी की सजा सुनाई गयी थी।
सरकार के इस निर्णय ने समूचे देश को स्तब्ध कर दिया , चल रहा मुकदमा सारे विश्व में चर्चा का विषय बन गया।
इस मुकदमे ने सारे भारत में चेतना जागृत कर दी।
सर्वत्र इसके विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए। इस समय एक नारा ऐसा था जो भारत के नगरों की गली-गली में गूंज उठा था।
“लाल किले से आई आवाज, सहगल, ढिल्लों,शाहनवाज”
लोगों के हस्ताक्षर सभाओं के दौर ने वायसराय को अपना विशेषाधिकार प्रयोग कर तीनों की फाँसी माफ करने को विवश होना पड़ा।