एंग्लो इंडियन ऐसे व्यक्ति को माना जाता है जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश के हों
हर ईसाई व्यक्ति एंग्लो इंडियन नहीं होता है। इसके लिए पुरुष जनक यूरोपीय मूल का होना चाहिए।
इनकी मातृभाषा अंग्रेजी है और रीति-रिवाज भी.
ऐंग्लो इंडियन विशेष शब्द है जो जाति और भाषा के संबंध में प्रयुक्त होता है। जाति के संबंध में यह उन अंग्रेजों की ओर संकेत करता है जो भारत में बस गए हैं या व्यवसाय अथवा पदाधिकार से यहाँ प्रवास करते हैं। इनकी संख्या तो आज भारत में विशेष नहीं है और मात्र प्रवासी होने के कारण उनको देश के राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त नहीं, परंतु एक दूसरा वर्ग उनसे संबंधित इस देश का है और उसे देश के नागरिकों के सारे हक भी हासिल हैं।
एंग्लो-इंडियन के भारत में आने की शुरुआत उस समय हुई थी जब अंग्रेज भारत में रेल की पटरियां और टेलीफोन लाइन बिछा रहे थे, इस काम को करने के लिए यूरोपियन समाज के लोगों को भारत में बुलाया गया और फिर उन्होंने भारत में ही शादियाँ की और फिर यहीं बस गये।
एंग्लो-इंडियन भारत के एक विशिष्ट क्षेत्र जैसे पंजाब या बंगाल के बजाय भारत के लोगों के रूप में पहचान करते हैं।
एंग्लो इंडियन केवल भारत में ही नहीं रहते दुनिया के कई देशों में रहते हैं.ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में काफी बड़ी संख्या में एंग्लो इंडियन हैं
12 अगस्त को विश्व आंग्ल भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। सदियों के दौरान जब ब्रिटेन भारत में था, ब्रिटिश पुरुषों और भारतीय महिलाओं के बीच मिलन से पैदा हुए बच्चों ने एक नया समुदाय बनाना शुरू कर दिया। ये एंग्लो-इंडियन ब्रिटिश राज के दौरान आबादी का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा थे, और कुछ प्रशासनिक भूमिकाओं में अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व करते थे। प्रलेखित एंग्लो-इंडियन जनसंख्या 1947 में स्वतंत्रता के समय लगभग दो मिलियन से घटकर 2010 तक 300,000 – 1,000,000 हो गई।
बहुत से एंग्लो इंडियन लोग प्रसिद्ध हुए। जैसे कि कीलर बंधु। ये दोनों भाई एयर फील्ड मार्शल डेंजिल कीलर और विंग कमांडर ट्रेवोर कीलर भारतीय वायुसेना का हिस्सा रहे।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 331 के अंतर्गत लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के अधिकतम 2 सदस्यों के नामांकन का प्रावधान भारत के राष्ट्रपति के अधिकार में है। वहीं एंग्लो इंडियन समुदाय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 333 के अंतर्गत विधानसभा में अधिकतम 1 सदस्य का नाम निर्देशित करने का अधिकार कुछ राज्यों के राज्यपाल के पास निहित है। एंग्लो इंडियन समुदाय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 334 (ख) के अंतर्गत लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में नाम निर्देशन के द्वारा प्रतिनिधित्व प्राप्त है।