उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (Consumer Protection Act, 1986)-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध एक कारगर प्रयास है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का बिल 9 दिसम्बर, 1986 को भारतीय संसद के पटल पर रखा गया जो पारित हो गया।
24 दिसम्बर, 1986 को भारत के राष्ट्रपति ने इस अधिनियम पर अपनी स्वीकृति प्रदान की।
यह अधिनियम जम्मू तथा कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में 15 अप्रैल, 1987 से लागू हो गया। इस अधिनियम में सन् 1993, 2002, 2003, 2004 एवं इसके पश्चात् समय-समय पर संशोधन किये जाते रहे हैं। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं
(1) इस अधिनियम के पारित होने से भारत विश्व का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने उपभोक्ताओं के हितों को न्यायिक संरक्षण प्रदान किया है।
(2) यह अधिनियम सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लागू होता है।
(3) यह अधिनियम सभी क्षेत्रों एवं सेवाओं पर लाग होता है।
(4) इस अधिनियम की व्यवस्थाएँ क्षतिपूरक प्रकृति की हैं, दण्डात्मक प्रकृति की नहीं।
(5) इस अधिनियम में शीघ्र एवं त्वरित न्याय दिलाने की व्यवस्था है।
(6) इसके अन्तर्गत कोई अन्य शुल्क नहीं देना पड़ता है और न किसी आवेदन पर टिकट ही लगाना पड़ता है। इस प्रकार इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया निःशुल्क है।
(7) उपभोक्ता को किसी वकील की सेवाएँ लेने की आवश्यकता नहीं है। वह स्वयं अपने मुकदमे की पैरवी कर सकता है।
(8) यह अधिनियम धर्म-निरपेक्ष प्रकृति का है।
(9) इस अधिनियम के अन्तर्गत जिला स्तर पर ‘जिला उपभोक्ता फोरम’ तथा राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर आयोगों का गठन किया गया है जिनके द्वार पर उपभोक्ता स्वयं अपनी समस्या को लेकर जा सकता है। यह अधिनियम जम्मू तथा काश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागू होता है।