आर्थिक संवृद्धि दर का अभिप्राय राष्ट्रीय आय या प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से है |
आर्थिक संवृद्धि एकपक्षीय है अर्थात् केवल राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि से सम्बन्धित है, उत्पादन संरचना में होने वाले परिवर्तनों से नहीं।
आर्थिक संवृद्धि एवं संख्यावाचक या परिमाणात्मक संकल्पना है।
आर्थिक संवृद्धि की दर धनात्मक के साथ-साथ कभी-कभी ऋणात्मक भी हो सकती है।
आर्थिक संवृद्धि की धारणा आर्थिक दृष्टि से ऐसे उन्नत देशों के लिए उपयुक्त है जहाँ पर संसाधन पर्याप्त और विकसित हैं।
इसमें नवीन तकनीक एवं संस्थागत सुधारों का अभाव रहता है |