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shashank.
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- November 19, 2021 at 10:22 pm
ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों द्वारा इतिहास के साम्राज्यवादी उपागम को अपनाने का मूलभूत उद्देश्य भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को स्थायित्व एवं दृढ़ता प्रदान करना था। इतिहास के साम्राज्यवादी उपागम के अंकुर इतिहास के प्राच्यविदीय उपागम में ही मौजूद थे।19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इंग्लैण्ड के उपयोगितावादी दर्शन को हम आंशिक रूप से प्राच्यविदीय इतिहास उपागम एवं साम्राज्यवादी इतिहास उपागम की एक कड़ी के रूप में देख सकते हैं। उपयोगितावादी सिद्धान्त का प्रमुख प्रतिपादक जेरेमी बेंथम नामक दार्शनिक को माना जाता है।
उपयोगितावादी दृष्टिकोण से भारत का इतिहास लिखने का श्रेय प्रसिद्ध उपयोगितावादी दार्शनिक जॉन स्टुअर्ट मिल के पिता जेम्स मिल को जाता है। जेम्स मिल बेथम का एक घनिष्ठ अनुयायी था। उसने छ: खण्डों के ग्रन्थ ‘ब्रिटिश भारत का इतिहास’ (History of British India) की रचना उपयोगितावादी दृष्टिकोण से ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन को ध्यान में रखते हुऐ की। उसने ‘असिस्टेंट टू द इक्जामिनर ऑफ इण्डिया कारेस्पोन्डेस’ के पद पर रहते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नीतियों को प्रभावित भी किया था। मिल न तो कभी भारत आया और न ही यहाँ की भाषा जानता था, इसके बावजूद भी उसने भारत के अतीत को अत्यन्त अविकसित, भ्रष्ट एवं पतनोन्मुख दिखाया और उन्हें असभ्य कहकर सम्बोधित किया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मिल ही वह प्रथम व्यक्ति था जिसने भारतीय इतिहास के प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास को क्रमशः हिन्दू सभ्यता, मुस्लिम सभ्यता तथा ब्रिटिश सभ्यता का नाम देकर साम्प्रदायिकता की भावना को इतिहास में प्रतिरोपित किया था। इस प्रकार मिल का इतिहास नितान्त अव्यावहारिक एवं पूर्वाग्रहों से ग्रसित था।
जेम्स मिल द्वारा लिखित ‘भारत का इतिहास’ अपनी तमाम आलोचनाओं, दुराग्रहों एवं अव्यावहारिक दृष्टिकोण के बावजूद 19वीं सदी में एक स्तरीय ग्रन्थ माना गया। मिल का उपयोगितावादी सिद्धान्त ब्रिटिश प्रशासकों के लिये भारत में साम्राज्य की दृढ़ता के लिये मार्गदर्शक बना। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश प्रशासकों ने ही कालान्तर में भारत के इतिहास पर कलम उठाई और उनके लिये जेम्स मिल का यह ग्रन्थ सन्दर्भ ग्रन्थ सिद्ध हुआ और इन्हीं इतिहासकारों को हम साम्राज्यवादी इतिहासकार कह सकते हैं। एच. एच. विल्सन, माउण्ट स्टुअर्ट एल्फिसटन, विसेट स्मिथ आदि सभी किसी न किसी रूप में कम्पनी अथवा ब्रिटिश साम्राज्ञी की शाही सरकार में प्रशासक थे। एच. एच. विल्सन द्वारा तो मिल के एक परवर्ती संस्करण का सम्पादन भी किया गया था।
प्रशासक से इतिहासकार बने एवं अन्य साम्राज्यवादी इतिहासकारों का, इतिहास लेखन का मूलभूत उद्देश्य, ब्रिटिश साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करना था। ये साम्राज्यवादी अपने इतिहास लेखन द्वारा यह सिद्ध करना चाहते थे कि भारतीय समाज की जड़ता को ब्रिटिश शासन एवं उसके कानूनों द्वारा ही तोड़ा जा सकता है। अत: वे बताना चाहते थे कि भारतीय जन मानस का हित इसी में है कि वे ब्रिटिश शासन के अधीन रहकर ही प्रगति करें, इसके पीछे वस्तुत: ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा एवं स्थिरता की दृष्टि प्रबल रूप से विद्यमान थी। साम्राज्यवादी इतिहासकारों ने प्रायः उनकी साम्राज्यवादी अवधारणा को पुष्ट करने वाले साक्ष्यों का अनुप्रयोग किया। प्रशासक से इतिहासकार बने विसेण्ट स्मिथ को एक महानतम साम्राज्यवादी इतिहासकार माना जा सकता है। उसने अपनी सर्वप्रसिद्ध कृति ‘अर्ली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया’ (1924) में अपने साम्राज्यवादी दृष्टिकोण का स्पष्ट परिचय दिया है। हर्षोत्तरकालीन राजनीतिक स्थिति की अव्यवस्था के मद्देनजर स्मिथ की टिप्पणी थी कि भारत जब भी किसी शक्तिशाली सत्ता के नियंत्रण से मुक्त हुआ, अराजकता
और अव्यवस्था की स्थिति में पहुँच गया और यदि वह सद्भावनापूर्ण ब्रिटिश शासन के कठोर बन्धन से मुक्त हो जाये तो पुन: उसी स्थिति में पहुँच जायेगा।” स्मिथ का यह कथन इतिहास के साम्राज्यवादी उपागम का स्पष्ट प्रमाण है।मध्यकालीन भारत के इतिहास के सन्दर्भ में इलियट एण्ड डाउसन द्वारा आठ जिल्दों में लिखा गया ग्रन्थ ‘ए हिस्ट्री ऑफ इण्डिया एज टोल्ड वाय इट्स ओन हिस्टोरियन’ भी उनके साम्राज्यवादी उपागम का ही एक सोचा-समझा प्रयास था। आधुनिक भारतीय इतिहास के लेखन में भी साम्राज्यवादी दृष्टिकोण का पुट हावी रहा। लार्ड मिण्टो आदि वायसरायों की घोषणाओं में सर्वप्रथम साम्राज्यवादी दृष्टिकोण उभरकर सामने आया। इतिहास के साम्राज्यवादी उपागम को वेलेन्टाइन शिरोल, रॉलेट समिति की रिपोर्ट, वर्नी लाभेट एवं मॉण्टेग्यू चेम्सफोर्ड की रिपोर्ट द्वारा सुनियोजित रूप से सामने रखा गया। माण्टफोर्ड रिपोर्ट के लेखकों ने भारत में अंग्रेजी राज को ही भारतीय राष्ट्रीय जागृति का कारक माना। कूपलैण्ड के अलावा, वेलण्टाइन की कृति ‘इण्डियन अनरेस्ट’ में भी साम्राज्यवादी उपागम स्पष्टतः देखा जा सकता है। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिये सर्वाधिक हानिकारक मानते हुए बाल गंगाधर तिलक को ‘भारत में अशान्ति का जन्मदाता’ कहा था। इनके अलावा पर्सिवल स्पीयर, अनिल सील, जे. ए. गुलहर आदि के लेखन में भी इतिहास का साम्राज्यवादी दृष्टिकोण दिखाई पड़ता है।
अनिल सील एवं उसके अनुयायियों द्वारा 1968 ई. के पश्चात् इतिहास के साम्राज्यवादी उपागम का एक अनुदारवादी दृष्टिकोण अपनाया गया जिसे लोकप्रिय रूप में कैम्ब्रिज स्कूल के नाम से जाना जाता है। कैम्ब्रिज इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं हैं कि भारत एक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में था बल्कि वे मानते हैं कि जिसे भारत के नाम से जाना जाता है, वह वस्तुतः विभिन्न धर्मों, जातियों, समुदायों और हितों का समूह था। भारत विभिन्न पहचानों, यथा—ब्राह्मण, गैर-ब्राह्मण, हिन्दू-मुस्लिम, आर्य और भद्रलोक आदि पहचानों में विभाजित हैं।
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