- This topic has 1 reply, 2 voices, and was last updated 1 year, 4 months ago by
jivtarachandrakant.
- Post
- उत्तर
-
-
- November 19, 2021 at 8:53 pm
आदिकाल के बारे में सर्वाधिक विवादास्पद प्रश्न इसके नामकरण का रहा है। विभिन्न साहित्यकारों ने इस काल को अलग-अलग नामों से सम्बोधित किया है।इस काल के लिए लम्बे समय तक आचार्य शुक्ल का दिया हुआ नाम वीर गाथा काल‘ स्वीकृत रहा, परन्तु नवीन शोध परिणामों से इस नामकरण की सार्थकता पर अनेक प्रश्न-चिह्न उपस्थित हो गये।
विभिन्न विद्वानों ने इस काल के लिए जो नाम सुझाये हैं वे इस प्रकार है।
चारणकाल – जार्ज ग्रियर्सन
प्रारम्भिक काल – मिश्र बंधु
बीजवपन काल – आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
वीरगाथा काल – आचार्य रामचंद्र शुक्ल
सिद्ध सामंत काल – पं. राहुल सांकृत्यायन
संधिकाल एवं चारण काल – डॉ. राम कुमार वर्मा
आदि काल – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
सर्वाधिक मत आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा वीरगाथा काल को स्वीकार जाता है
वीरगाथा काल : आचार्य शुक्ल ने मिश्र बंधुओं के दिये हुये नाम को अस्वीकार करते हुये इस युग को वीरगाथा काल नाम से सम्बोधित किया ।
शुक्लजी ने इस युग में वीरगाथाओं (रासो काव्यों) की प्रचुरता को देखते हुए ही इसे वीरगाथा काल नाम दिया ।
उन्होंने इस युग के साहित्य में वीर गाथाओं को ही सम्मिलित किया और जैन तथा बौद्ध साहित्य को धार्मिक साहित्य कहकर इसमें सम्मिलित नहीं किया।
उन्होंने वीर गाथा काल नाम के पक्ष में अपना तर्क देते हुए लिखा है कि ‘मुंज और भोज के समय (संवत् 1050 के लगभग) में तो ऐसी अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी का पूरा प्रचार शुद्ध साहित्य या काव्य रचनाओं में पाया जाता है।
अतः हिन्दी साहित्य का आदिकाल संवत् 1050 से लेकर 1375 तक अर्थात महाराजा भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना जा सकता है।
राज्याश्रित कवि अपने आश्रयदाता राजाओं के पराक्रमपूर्ण चरितों या गाथाओं का वर्णन करते थे। यही प्रबन्ध परम्परा रासो के नाम से पायी जाती है, जिसे लक्ष्य करके इस काल को हमने ‘वीरगाथा काल‘ कहा है।
शुक्लजी का यह कहना है कि सिद्धों और जैनों के साहित्य को धार्मिक होने के कारण इस यग में सम्मिलित नहीं किया जा सकता, उचित प्रतीत नहीं होता ।
यदि वे धार्मिक रचनाओं को साहित्य में सम्मिलित नहीं करते हैं तो फिर उन्हीं के द्वारा दिया हुआ भक्तिकाल नाम सर्वथा अनुपयुक्त हो जाता है। और ऐसी स्थिति में पूर्व मध्यकाल के साहित्य को हिन्दी का साहित्य नहीं माना जा सकता ।
सूर, तुलसी, कबीर आदि का काव्य भी धार्मिक साहित्य है। फिर कौनसा ऐसा कारण है कि शुक्लजी सूर, तुलसी और कबीर की रचनाओं को तो ‘साहित्य’ में सम्मिलित कर लेते हैं और सिद्धों तथा जैनों की रचनाओं को साहित्य में सम्मिलित नहीं करते?
शुक्लजी द्वारा किये गये नामकरण वीरगाथा काल’ का मूल आधार निम्नलिखित ग्रन्थ हैं
(1) विजयपाल रासो
(2) हम्मीर रासो
(3) कीर्तिलता
(4) कीर्तिपताका
(5) पृथ्वीराज रासो
(6) जयचंद्र प्रकाश
(7) जयमयंक जस चन्द्रिका
(8) परमाल रासो
(9) खुमान रासो
(10) बीसलदेव रासो
(11) खुसरो की पहेलियाँ
(12) विद्यापति-पदावली
उन्होंने बीसलदेव रासो, विद्यापति पदावली तथा खुसरो की पहेलियाँ नामक ग्रंथों के अतिरिक्त सभी को वीरगाथाएँ मानते हुए इस युग को वीरगाथा काल नाम दिया है।
इन 12 ग्रंथों के अलावा प्राप्त रचनाओं को शुक्लजी ने यह कहकर वीरगाथा काल में सम्मिलित नहीं किया कि कुछ तो इनमें नोटिस मात्र है, कुछ बाद की रचनाएँ हैं और कुछ जैन धर्म के उपदेश विषयक ग्रंथ है।
-
Tagged: आदिकाल, वीरगाथा काल, हिंदी साहित्य
- You must be logged in to reply to this topic.