आण्विक खतरे से आप क्या समझते हैं

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      Quizzer Jivtara
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        आण्विक भय की खूबी यह है कि वह अन्य भयों को ढंक लेता है …. उसका खास तरह की पार्टियों एवं सैन्य क्षेत्रों में स्वागत होता है।” इसी कारण “आण्विक खतरा अन्य खतरों की तुलना में देखा जाने लगता है, वह भी अन्य खतरों की तरह एक खतरा मान लिया जाता है, इससे नया खतरा पैदा होता है। यह खतरा है, खतरे को ही भूल जाने का आण्विक खतरे को छिपाने में प्रचार माध्यमों की बड़ी भूमिका रही है। उनके लिए आण्विक बम भी एक घटना है। एक सनसनीखेज खबर है। वे आण्विक बम में निहित खतरों को छिपाते हैं और नाटकीय किस्म के भड़काऊ या महिमामंडन करने वाले तर्कों को उछालते हैं या गैर-जरूरी चीजों पर तेजी से ध्यान खींचते हैं। इसके कारण आम जीवन के विचार-विमर्श से आण्विक बम के पीछे निहित खतरों की चर्चा तक नहीं होती। आण्विक बम के निर्माण के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर किस तरह का खतरा आएगा इसे छिपाते हैं। जनमाध्यमों ने भारत के द्वारा पोखरण-2 के परीक्षणों के बाद अपनी आण्विक नीति में बगैर संसद की स्वीकृति प्राप्त किए परिवर्तन किया और देश की अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त तौर पर बोझा डालने की कोशिश की इससे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होगा। इस पहलू को छिपाया गया, किंतु अमेरिका के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बारे में काफी हंगामा मचाया गया। ध्यान रहे, आण्विक अस्त्र आत्मरक्षात्मक अस्त्र नहीं है। यह संहारक अस्त्र है इसे चलाओ या न चलाओ इसकी चपेट में सारा समाज आएगा। यह अस्त्र स्वयं में समाजघाती है। यदि इसे चलाया जाता है तो संहार करता है, यदि बनाया जाता है और शक्ति प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो इसके निर्माण और रख-रखाव पर बेशुमार खर्चा आता है।

        आण्विक बम के आधार पर यदि राष्ट्रों के बीच भय अथवा तनाव की सृष्टि होती है तो इससे सबसे ज्यादा फायदा शस्त्र उद्योग को होता है और आम जनता के विकास के मद में होने वाले खर्चों में कटौती होती है, राष्ट्रों में आपसी विश्वास में कमी आती है। आपसी विश्वास में कमी और तनाव की सृष्टि के कारण राष्ट्रों के बीच शत्रुभाव पैदा होता है। भारत-पाकिस्तान के बीच में पैदा हुआ तनाव उसका आदर्श नमूना है।

        आण्विक बम का मनोवैज्ञानिक आयाम यह है कि इससे राष्ट्रीय अहं में वृद्धि होती है। साथ ही, सभी के खिलाफ संघर्ष के विचार का जन्म होता है। राजनीतिक समस्याओं के राजनीतिक समाधान के बजाय सैन्य समाधान की ओर राष्ट्र सोचने लगता है। इसके लिए युद्ध के मनोविज्ञान और तज्जनित भाषा का प्रतिक्रियावादी ताकतें इस्तेमाल करने लगती हैं। आण्विक बम के परीक्षणों के बाद संघ परिवार ने जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया वैसा प्रयोग सिर्फ युद्ध में ही होता है। संघ परिवार ने ‘रिएक्टिव’ की भाषा और राजनय कौशल का इस्तेमाल किया। इसी तर्ज पर बड़े जनमाध्यमों ने भी विचार प्रस्तुत किए।

        राष्ट्रो को आण्विक हथियारों को प्राप्त करने के लिए हतोत्साहित करने वाले अनुशासनात्मक नियम :-

        (1) संसाधनों को आण्विक कार्यक्रम में लगाने अन्य आवश्यक आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं को चलाने का अवसर कम हो सकते हैं।

        (2) प्रतिकूल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लोकमत जो राष्ट्र की स्थिति को प्रभावित करेगा।

        (3) स्थापित या अन्य महाशक्तियों द्वारा दी गई परम्परागत सुरक्षा गारंटी में व्यवधान

        (4) अपेक्षित प्रौद्योगिकी और इसके फलस्वरूप तदनुरूप आण्विक रणनीति के विकास की अव्यवहार्यता ।

        (5) शस्त्र निर्माण की दौड़ में वृद्धि जिससे एक दूसरे देश के हितों की उपेक्षा करने का अपराध करते हैं।

        (6) आण्विक शस्त्रों का विकास करने से राज्य में आर्थिक विकास नहीं हो पाता है।

        (7) आण्विक शस्त्रों से अंतराष्ट्रीय संबंधों में कटुता व वैमनस्य की

        भावना का जन्म होता है। (8) आज के आण्विक शस्त्र सर्वनाश के दूत हैं जो विश्व भर में तबाही मचाने की ताकत रखते हैं।

        (9) यह असुरक्षा का ऐसा वातावरण निर्मित कर देता है कि कमजोर से कमजोर देश भी शस्त्र प्राप्ति के लिए विकसित देशों का शस्त्र निर्माता धनी देशों पर निर्भर हो जाता है।

        (10) यह नैतिकता के विपरीत है।

        उपयुक्त तथ्यों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आज आण्विक शस्त्रों का प्रसार पूरे विश्व के लिए खतरे का संकेत है,

         

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