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उत्तरकर्ता jivtarachandrakantModerator
व्यंजन से स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार | (परिवर्तन) को व्यंजन सन्धि कहते हैं।
व्यंजन सन्धि के कु प्रमुख नियम –
नियम- 1– यदि ‘क्’ ” ” ‘त्’ ‘प्’ के पश्चात् किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण आये, अथवा ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’, या कोई स्वर आये, तो ‘क्’ ‘च्’ ‘द्’ ‘त्’ ‘प’ के स्थान पर अपने ही वर्ग का | तीसरा वर्ण हो जाता है।
जैसे:
दिक् + गज = दिग्गज
अच् + अन्त = अजन्त
सत् + आचार = सदाचार
सत् + वाणी = सवाणी
नियम – 2 – यदि ‘क्’ ‘च’ ‘द्’ ‘त्’ ‘प्’ के पश्चात न/ म आये | तो क् च् द् त् प् अपने ही वर्ग के पंचम वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म) में। बदल जाता है।
जैसे:
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
सत् + मार्ग = सन्मार्ग
षट् + मार्ग = षण्मार्ग
चित् + मय = चिन्मय
नियम – 3– यदि म् के पश्चात कोई स्पर्श व्यंजन वर्ण आये, तो म्
का अनुस्वार या बाद वाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है।
जैसे:
अहम् + कार = अहंकार
सम् + गम = संगम
नियम – 4– तु/द् के पश्चात यदि च/छ हो तो तु/द् के स्थान पर च हो जाता है।
जैसे:
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
नियम – 5- यदि न्/द् के पश्चात ल हो तो न्/द् ‘ल’ में बदल
जाते हैं और ‘न्’ के पश्चात ‘ल’ रहे तो ‘न्’ का अनुनासिक के साथ |’ल’ हो जाता है।
जैसे:
तत् + लीन = तल्लीन
उत् + लास = उल्लास
नियम – 6- यदि त्/द् के पश्चात ज/झ् हो तो त् या द् के स्थान पर ज् हो जाता है।
जैसे:
सत् + जन = सज्जन
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
नियम-7- द् के पश्चात् ‘3/ड’ हो तो त्/द् के स्थान पर ड हो जाता है।
जैसे:
उत् + डयन = उड्यन
नियम-8-त्/द् के बाद ट/ठ हो तो त्/द् के स्थान पर ट् हो जाता
जैसे:
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
तत् + टीका = तट्टीका
नियम-9-त्/द् के पश्चात् श हो तो त्/द् का च और श का छ हो जाता है।
जैसे:
उत् + श्वास = उच्छ्वास उत् + श्रृंखल = उच्छंखल
व्यंजन तीन प्रकार के होते हैं-(1) स्पर्श (Mute Consonants), (2) अंत:स्थ (Semi-Vowels), (3) उष्म (Sibilants)।
- स्पर्श व्यंजन- “क” से “म” तक पच्चीस वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। ये पाँच वर्णों-कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग में विभक्त किए गये हैं। प्रत्येक वर्ग का नाम उसी वर्ग के पहले वर्ण से प्रारम्भ होता है। इनको स्पर्श व्यंजन इसलिए कहा जाता है कि इनका उच्चारण करते समय जिह्वा का कंठ, आदि उच्चारण स्थानों में पूरा स्पर्श होता है।
2.अंतःस्थ व्यंजन अथवा अर्द्धस्वर- य, र, ल, व अंत:स्थ व्यंजन कहलाते हैं। इनको”अंत:स्थ” इस कारण कहा जाता है कि स्वरों और व्यंजनों के मध्य में स्थित हैं। ये आधे स्वर और आधे व्यंजन भी कहे जा सकते हैं। इनके उच्चारण में जिह्वा विशेष सक्रिय नहीं रहती जैसा कि अन्य व्यंजनों के उच्चारण में होता है।
आधुनिक व्याकरण के विद्वानों के अनुसार र और ल शुद्ध व्यंजन माने गए हैं। इस स्थिति में य तथा व ही अर्द्धस्वर रह जाते हैं।
- उष्म व्यंजन-श, ष, स, ह उष्म व्यंजन कहलाते हैं । इनको उष्म इसलिए कहा जाता है कि इनके उच्चारण में श्वास की प्रबलता के कारण एक प्रकार की गर्मी (उष्मा) उत्पन्न होती है।
इन 33 व्यंजनों के अतिरिक्त क्ष, त्र, ज्ञ, श्र ये चार वर्ण और भी हैं। ये संयुक्त व्यंजन हैं और दो-दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं।
ड और ढ़ दो ऐसे व्यंजन हैं जिन्हें द्विगुण व्यंजन कहा जाता है।
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