- उत्तर
-
उत्तरकर्ता jivtarachandrakantModerator
निजी और सार्वजनिक वित्त में अंतर निम्नलिखित है ।
1.आय और व्यय का समायोजन:-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – इसमें व्यय के अनुसार आय प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)-इसमें आय के अनुसार व्यय का निर्धारण किया जाता है।
2. उद्देश्य :-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – राजस्व का उद्देश्य व्यापक और विस्तृत | है तथा अधिकतम समाज कल्याण | से सम्बन्धित है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त) – इसका उद्देश्य व्यक्तिगत एवं पारिवारिक कल्याण है और केवल व्यक्तिगत स्वार्थ एवं संकीर्ण भाव से प्रेरित होता है।
3.अवधि:-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – आय-व्यय का बजट प्रायः एक वर्ष की अवधि के लिए बनाया जाता है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)- आय-व्यय बजट की कोई निश्चित अवधि नहीं होती।
4.आय के साधनों में लोच:-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – आय के अनेक साधन होते हैं जिनमें नये कर, पुराने करों में वृद्धि, नोट छापना, ऋण लेना आदि।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)- आय के साधन निश्चित एवं सीमित होते हैं।
5.राज्य का अपेक्षाकृत अधिक प्रभुत्व:-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – राज्य का अपेक्षाकृत अधिक प्रभुत्व | होने के कारण वह व्यक्तियों की सम्पत्तियों पर अधिकार जमा सकता है और उसको हड़प भी सकता है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)- एक व्यक्ति के पास किसी दूसरे व्यक्ति की सम्पत्ति हड़पने का अधिकार नहीं होता ।
6.राजकीय ऋण की अनिवार्य प्रकृति:–
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – सरकार आय इकट्ठा करने में जबर्दस्ती कर सकती है तथा अवहेलना करने | पर दण्ड भी दे सकती है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)– आय प्राप्त करने में अनिवार्यता का गुण नहीं होता और ऋण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
7.ऋणों के साधनों में अन्तर:-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – अधिक साख के कारण खचों की पूर्ति के लिए देश-विदेशों से बड़ी मात्रा में ऋण लेना सम्भव है और ब्याज की दर | नीची होती है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)– व्यक्ति की साख सीमित होती है और ऋण को मात्रा कम तथा देश के भीतर तक ही सीमित होती है तथा ब्याज की दर अधिक होती है।
8.भविष्य के लिए आयोजन:-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – सरकार की वित्त व्यवस्था दीर्घकालीन दृष्टिकोण से प्रेरित होती है। वह वर्तमान की अपेक्षा उज्ज्वल भविष्य को अधिक | महत्व देती है
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)- निजी व्यक्ति अपने वित्त में इतना दूरदशी नहीं होता। यह वर्तमान से अधिक सम्बन्ध रखता है।
9.गोपनीयता:-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – सरकार अपने आय-व्यय का निःसंकोच प्रचार करती है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)- इसमें व्यक्ति अपने आय-व्यय के हिसाब को बड़ा गोपनीय रखते हैं।
10.बजट की प्रकृति :-
राजस्व (सार्वजनिक वित्त) – सरकारी बजट सन्तुलित होना ही अच्छा समझा जाता है और कभी-कभी घाटे का बजट बनाना भी बुद्धिमानी समझी जाती है।
व्यक्तिगत वित्त (निजी वित्त)- एक व्यक्ति की कुशलता इसी में है कि वह अतिरेक बजट ही बनाये।