यह व्यवस्था लॉर्ड कॉर्नवालिस ने 1873 में बंगाल में शुरू की थी, जिसे बंगाल बंदोबस्त अथवा स्थाई बंदोबस्त के नाम पर जाना गया।
यह व्यवस्था भारत की लगभग 19% भूमि पर लागू की गई। सर्वप्रथम यह व्यवस्था बंगाल में लागू की गई।
इसके अंतर्गत जमीदारों को अब भू-राजस्व का लगभग 10/11 भार कम्पनी को तथा 1 /11 भाग अपने पास रखना था ।
स्थाई बंदोबस्त के परिणाम को जमींदारी व्यवस्था के नाम से जाना जाता है।
यह व्यवस्था पूर्वी भारत में व्यापक रूप में लागू हुई।
इस व्यवस्था में, एक गाँव अथवा कुछ गाँवों की भूमि एक व्यक्ति अथवा कुछ संयुक्त स्वामियों के अधिकार में होती थी जो सरकार को भू-राजस्व के लिए जिम्मेदार होते थे।
यही नहीं, काश्तकार और उपकाश्तकार सभी को एक ही तरह के अधिकार और विशेषाधिकार मिले हुए थे और ये सभी एक ही तरह के बंदोबस्त अथवा समझौते पर आधारित होते थे।
जमींदारी व्यवस्था किसानों से कर वसूली का एक तरीका था। इस व्यवस्था में जमींदार के लिए करों का एक हिस्सा स्वयं रख लेने का प्रावधान था।
जमीदार द्वारा निश्चित समय में सरकारी खजाने में लगान न जमा करने पर भूमि को नीलाम कर दिया जाता था।
दैवीय प्रकोप के समय लगान की दर में कोई रियायत नहीं दी जाती थी।
लगान की दर बढ़ाने का अधिकार सरकार के पास नहीं था। लेकिन जमींदार इसमें वृद्धि कर सकता था।
जमींदार भूमि को बेच सकता था और रेहन व दान में भी दे सकता था।