हरेक समाज का स्तरीकरण आयु, लिंग, वर्ग और शहरी तथा ग्रामीण विभाजन पर निर्भर करता है। अगर समाज में समान जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा, कबीलों के लोग अधिक हों तो उसे समरूप समाज कहते हैं।
कृषक समाज सामान्य तौर पर एक समरूप समाज होता है। दूसरे शब्दों में प्रायः सभी कृषकों के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, विचार तथा उनके जीवन जीने के तरीके आदि में समरूपता पायी जाती है। उनका सम्पूर्ण जीवन कृषि पर ही निर्भर होता है। इसीलिए कहा जाता है कि कृषक समाज अपेक्षाकृत एक समरूप समाज होता है।