संविधान की कुंजी उद्देशिका या प्रस्तावना को कहा जाता है
भारतीय संविधान की उद्देशिका या प्रस्तावना को ‘संविधान की कुंजी‘ कहा जाता है। पं. जवाहर लाल नेहरू ने 13 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा के समक्ष उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया।
इसे ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया। प्रस्तावना संविधान के आदर्शों, लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन करती है।
प्रस्तावना में- ‘ हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’
सर्वोच्च न्यायालय ने 1973 में केशवानन्द भारती वाद में प्रस्तावना को भारतीय संविधान का अभिन्न अंग स्वीकार किया। 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से समाजवादी, पंथनिरपेक्ष एवं राष्ट्र की अखण्डता शब्द जोड़े गये।
इनरी बेरुबारी के वाद में धारित किया गया कि उद्देशिका संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।”