व्यवहार को सुधारने का सर्वोत्तम समय छात्रावस्था होता है |
विद्यार्थी जीवन ही वह समय है, जिसमें बच्चों के चरित्र, व्यवहार तथा आचरण को जैसा चाहे वैसा रूप दिया जा सकता है।
यह अवस्था भावी वृक्ष की उस कोमल शाखा की भाँति है, जिसे जिधर चाहे मोड़ा जा सकता है।
पूर्णतः विकसित वृक्ष की शाखाओं को मोड़ना संभव नहीं, उन्हें मोड़ने का प्रयास करने पर वे टूट तो सकती हैं, पर मुड़ नहीं सकतीं।
छात्रावस्था उस श्वेत चादर की तरह होती है, जिसमें जैसा प्रभाव डालना हो, डाला जा सकता है। सफ़ेद चादर पर एक बार जो रंग चढ़ गया, सो चढ़ गया; फिर से वह पूर्वावस्था को प्राप्त नहीं हो सकती। इसीलिए प्राचीन काल से ही विद्यार्थी जीवन के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।
इसी अवस्था में सुसंस्कार और सद्वृत्तियाँ पोषित की जा सकती हैं। इसीलिए प्राचीन समय में बालक को घर से दूर गुरुकुल में रहकर कठोर अनुशासन का पालन करना होता था।